शुक्रवार, अक्तूबर 23, 2009

बढी बात जब बातही बातमें

बढी बात जब बातही बातमें
हसीं शाम ढलने लगी रातमें

न पर्दा उठाओ, कसम है तुम्हे
मिले ना जुनूँ और जज़्बातमें

तमन्ना जवाँ क्यों न होने लगे ?

झुकाये नज़र वह मुलाकातमें

कहीं फूल का बस बहाना न हो
कहीं दिल दिया हो न सौगातमें

समझ लो है आतिश मुहब्बतजनी
अगरचे लगे आग बरसातमें

अगर जीत लो तुम, मुझे है खुशी
तुम्हे क्या मिलेगा मेरी मातमें ?

'भँवर', ख्व्वाब गुलज़ार होने लगे
उन्हें बो लिया है खयालातमें

शनिवार, अक्तूबर 17, 2009

आयें हैं सो कुछ दिन गुजार जाते हैं

आयें हैं सो कुछ दिन गुजार जाते हैं
लेकर ना जब तक के कहार जाते हैं


क्या शानोशौकत पर गुमान करते हो
दुनियासे मुफ़लिस ताजदार जाते हैं


ना रास्ता अनजाना, न राह मुष्किल है
हर दिन इस दुनियासे हजार जाते हैं


जानकरभी के याँ बार बार आना है
जानेवालें क्यों बेकरार जाते हैं ?


रंजोगम का होने शिकार जाते हैं
करने जब उनका इंतजार जाते हैं


जाने किसकी सुनकर पुकार जाते हैं
मैखाने कुछ, तो कुछ मज़ार जाते हैं


उनके दिलका कब्ज़ा मिले न गैरों को
लो, हम दफ़्तरेतहसीलदार जाते हैं


मंदिर-मस्जिद की धूल की कसम, 'भँवर'
मैखानेभी जूते उतार जाते हैं