रातभर जल रहा था परवाना
क्यों न उजलेगी मेहफ़िलेजाना ?
चँद घडियाँ हैं दिल लगाने की
उम्रभरका है दिल को समझाना
इश्क़ शामिल है क्या गुनाहोंमें ?
क्यों कफ़स़ जैसा है सनमखाना ?
आँख तो नम है इक ज़मानेसे
बात कल की है, आपने जाना
सूख जाये ना प्यासमें आँखें
ग़मसे भर देना एक पैमाना
यह न पूछों की राहमें क्या है
फूल दिलका है, रौंदकर जाना
घर गरीबोंके रोशनी कैसी ?
आगमें लिपटा हो न काशाना
तलखियाँ घूँट घूँट देती है
ज़िंदगी है अजीब मैखाना
सोमवार, नवंबर 30, 2009
मंगलवार, नवंबर 24, 2009
क्या हुआ गर आँख उसकी नम नहीं ?
क्या हुआ गर आँख उसकी नम नहीं ?
यह पुरानी याद का मौसम नहीं
दूर तक हो फूल नज़रेयारमें
क्या हुआ गर गुलशनोमें हम नहीं ?
उन लबों पर वस्ल की हो सुर्खियाँ
आशिकोंकी मौत का मातम नहीं
दर्द उतना दो जिसे मैं सह सकूँ
आदमी हूँ; देवता, बरहम नहीं
और तोहफ़ा क्या उसे मैं दूँ, 'भँवर' ?
यार का सहरा लिखा यह कम नहीं
यह पुरानी याद का मौसम नहीं
दूर तक हो फूल नज़रेयारमें
क्या हुआ गर गुलशनोमें हम नहीं ?
उन लबों पर वस्ल की हो सुर्खियाँ
आशिकोंकी मौत का मातम नहीं
दर्द उतना दो जिसे मैं सह सकूँ
आदमी हूँ; देवता, बरहम नहीं
और तोहफ़ा क्या उसे मैं दूँ, 'भँवर' ?
यार का सहरा लिखा यह कम नहीं
सोमवार, नवंबर 16, 2009
तुम न आये, न कासिदो-खत तक
तुम न आये, न कासिदो-खत तक
दिल तडपता रहा कयामत तक
ज़ुल्म चुपचाप क्यों सहें हमने ?
अब तो मुमकिन नहीं शिकायत तक
अज़लसे हुस्नका अलम दिलपर
कर चुके दिलजलें बगावत तक
ज़ुल्म का दौर है अभी जारी
बात पहुँची कहाँ इनायत तक ?
साथ देना, चलो, नहीं मुमकिन
आप करते नहीं हिमायत तक
फिर तुम्हारा खयाल आया है
फिर हमें ले चले न गुरबत तक
इश्कमें क्या नहीं, 'भँवर', छोडा
शर्म क्या, छोड दी शराफत तक
दिल तडपता रहा कयामत तक
ज़ुल्म चुपचाप क्यों सहें हमने ?
अब तो मुमकिन नहीं शिकायत तक
अज़लसे हुस्नका अलम दिलपर
कर चुके दिलजलें बगावत तक
ज़ुल्म का दौर है अभी जारी
बात पहुँची कहाँ इनायत तक ?
साथ देना, चलो, नहीं मुमकिन
आप करते नहीं हिमायत तक
फिर तुम्हारा खयाल आया है
फिर हमें ले चले न गुरबत तक
इश्कमें क्या नहीं, 'भँवर', छोडा
शर्म क्या, छोड दी शराफत तक
बुधवार, नवंबर 11, 2009
शिकस्ता साज़ पर गाने लगी है
शिकस्ता साज़ पर गाने लगी है
वह दिल के तार सहलाने लगी है
शबिस्ताँमें कहीं गुलशन खिला या
हवाको साँस महकाने लगी है?
जो कल तक डस रही थी नागिनोंसी
परेशाँ ज़ुल्फ़ सिरहाने लगी है
जलेंगे दिल, तभी होगा उजाला
मुहब्बत की घटा छाने लगी है
किये होंगे हज़ारों कत्ल उसने
तभी तस्वीर हर थाने लगी है
नही जाती कभी तनहा बहारें
जवानी साथमें जाने लगी है
’भँवर’, तलवार तो तलवार, तेरी
कलमही कहर बरपाने लगी है
वह दिल के तार सहलाने लगी है
शबिस्ताँमें कहीं गुलशन खिला या
हवाको साँस महकाने लगी है?
जो कल तक डस रही थी नागिनोंसी
परेशाँ ज़ुल्फ़ सिरहाने लगी है
जलेंगे दिल, तभी होगा उजाला
मुहब्बत की घटा छाने लगी है
किये होंगे हज़ारों कत्ल उसने
तभी तस्वीर हर थाने लगी है
नही जाती कभी तनहा बहारें
जवानी साथमें जाने लगी है
’भँवर’, तलवार तो तलवार, तेरी
कलमही कहर बरपाने लगी है
गुरुवार, नवंबर 05, 2009
वही शाम होगी, वही रात होगी
वही शाम होगी, वही रात होगी
वही अजनबीसी मुलाकात होगी
अभी स्वप्नभी मैं नहीं देख पाया
अभी जागनेकी पुन: बात होगी
घडी दो घडी का मिलन है जुदाई
मिलें उम्रभर तो अलग बात होगी
समझमें न आए कि पूछू, न पूछू
जनाज़ा उठेगा कि बारात होगी
अमानत समझकर न लौटाइयेगा
'भँवर' दिल दिया है तो सौगात होगी
वही अजनबीसी मुलाकात होगी
अभी स्वप्नभी मैं नहीं देख पाया
अभी जागनेकी पुन: बात होगी
घडी दो घडी का मिलन है जुदाई
मिलें उम्रभर तो अलग बात होगी
समझमें न आए कि पूछू, न पूछू
जनाज़ा उठेगा कि बारात होगी
अमानत समझकर न लौटाइयेगा
'भँवर' दिल दिया है तो सौगात होगी
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