शनिवार, जुलाई 30, 2011

आज मेहफिलमें नहीं नाम-ओ-निशाँ परवाने का

आज मेहफिलमें नहीं नाम-ओ-निशाँ परवाने का

यह न हो आलम कहीं खुद शम्म्‍अ‌ के जल जाने का



हुस्न को भगवानने क्या खूब दे रख्खी जुबाँ


अर्ज भी करते हैं तो अंदाज़ है फरमाने का



और कितनी देर उठ-उठकर कयामत ढायेंगी ?


कब हुनर सीखेगी पलकें मूँदने-शरमाने का ?



हर नये दिन का अगर आग़ाज़ हो दीदारसे


ग़म किसे महसूस होगा चाँद के ढल जाने का ?



हाँ, हमें भी वक्त-ए-पीरी याद आना है खुदा


आज तो दिलपर है हावी संग इक बुतखानेका



दैर की इस भीडमें दुखसुखकी बातें क्या करें ?


देव, फुरसतमें किसी दिन रुख करो मैखाने का



दीन, दुनिया, दिल के मसले आप क्या कम थे, 'भँवर'


ज़िंदगीभर आदमी मोहताज क्यों है दाने का ?

शुक्रवार, जुलाई 22, 2011

मौत से पहलेही मुँहपर ओढ ली लोगोंने चादर

मौत से पहलेही मुँहपर ओढ ली लोगोंने चादर 

शुक्रिया तेरा, ज़माने, जी रही हूँ लाश होकर 



हो अगर बसमें, हमें रख दें तिजोरीमें छुपाकर 


रूह का वह खून कर दें, जिस्म परदेमें लिपटकर 



"बोल, तेरी क्या रज़ा है," यह नहीं पूछा किसीने 


हर कोई हाफ़िज़ बना है, बाप, भाई, दोस्त, शौहर 



ज़लज़ला या बाढ या सूखा, वजह सबकी यही है 


कह रहें ज़ाहिद सभी, अच्छे नहीं हव्वा के तेवर 



खूबसूरत है, सुनहरा है, मगर फिरभी कफ़स है 


ले मुझे आये हो जिसमें आप डोलीमें बिठाकर

सोमवार, जुलाई 04, 2011

लब्ज़ों के पैंतरोंसे आगे बढा न कोई

लब्ज़ों के पैंतरोंसे आगे बढा न कोई

अक्स-ए-खयाल-ए-शायर गर-चे दिखा न कोई



मुझको मिली न होगी ऐसी सजा न कोई


मेरे गुनाह क्या हैं, समझा सका न कोई



बदनाम मेहफिलोंने दामन छुडा लिया है


बज़्म-ए-शरीफ का भी देता पता न कोई



कितने अजीब हैं यह दुनिया के रास्ते भी


गुजरे हैं सब यहाँसे लेकीन बसा न कोई



चौपाल भी वहीं है, बाज़ार भी वहीं है


साहिब, खरी सुनाने कबिरा खडा न कोई



किस्सा-ए-ज़िंदगानी अक्सर रहे अधूरा


होता है खत्म कैसे यह जानता न कोई