मंगलवार, जनवरी 31, 2012

कहाँ खो गये हैं लबों के तबस्सुम




कहाँ खो गये हैं लबों के तबस्सुम            ||धृ|| 

न दिन में कोई ग़म, न रंजिश सर-ए-शब
भरे थे सुकूँ के पियाले लबालब
ज़ुबाँ पे ज़हर था, न दिल में ज़हर था
न टूटा हमारे सरों पर कहर था
फ़लक पर करोड़ों चमकते थे अंजुम         ||१||

कभी सोचता हूँ मैं बैठा अकेला                            
ये तनहाईयों का कहाँ तक है मेला
नज़र जानिब-ए-मंज़िल-ए-ज़िंदगी है
मैं जिस ओर देखूँ वहीं तीरगी है
कहाँ रोशनी के सहारे हुए गुम?              ||२||

ये लंबा सफर क्या कभी खत्म होगा?
थका है मुसाफ़िर, कहाँ तक चलेगा?
निशाँ तक नहीं तेरे कदमों के यारब
तेरी रहमतों के हैं प्यासे मेरे लब
कभी साकिया बन के रख सामने खुम      ||३||

शनिवार, जनवरी 28, 2012

जज़्बात बेयकीं हैं, एहसास बेयकीं हैं

जज़्बात बेयकीं हैं, एहसास बेयकीं हैं
इस अंजुमन में सारे आदाब बेयकीं हैं

बढ बढ के रुक रहें हैं उनके कदम के उनको
हम पर तो है भरोसा, हालात बेयकीं हैं

नाज़ुक बला के होते हैं तार दो दिलों के
कैसे जमेगी मेहफ़िल जब साज़ बेयकीं हैं?

क्या चीज़ है मुहब्बत, कोई समझ न पाया
इन्कार दिलबरी हैं, इकरार बेयकीं हैं

खून-ए-जिगर कलम में भर कर, 'भँवर', ग़ज़ल लिख
वरना यह शेर क्या हैं, अल्फाज़ बेयकीं हैं

शनिवार, जनवरी 21, 2012

गुलशन गुलशन हो आई है बादे-सबा

गुलशन गुलशन हो आई है बादे-सबा
कैसी निर्लज हरजाई है बादे-सबा

किस जोबन की अंगडाई है बादे-सबा?
किस दामन की रुसवाई है बादे-सबा?

शब भर दोनो के तन-मन पर मंडराया
उस तूफाँ की परछाई है बादे-सबा

तेरा दामन, तेरी खुशबू ग़ैर हुए
अब के देखें क्या लाई है बादे-सबा

शायद पूरब में कोई तारा टूटा
देखो कैसी सहमाई है बादे-सबा

कलियाँ तो, तुझसे करती है प्यार, 'भँवर'
कैसी नादाँ सौदाई है बादे-सबा

रविवार, जनवरी 15, 2012

कुछ मुस्करहाटें हमें नसीब हो

कुछ मुस्करहाटें हमें नसीब हो
हम भी कभी हुज़ूर के करीब हो

यूँ हाथ छोडकर न जाइये, अजी 
ऐसा न हो के रास्ता मुहीब हो

दिल में हमीं रहे, लबों पे भी हमीं
फिर चाहे साथ आप के रक़ीब हो

दिलबर वफ़ा करे तमाम उम्र, फिर
परवाह क्या, अमीर हो, गरीब हो

कुछ इस तरह से नज़्म पेश कर, 'भँवर'
माने सुख़न फ़हम के अंदलीब हो

मंगलवार, जनवरी 10, 2012

उधार की ज़िंदगी जिया हूँ, कभी किसी की, कभी किसी की

उधार की ज़िंदगी जिया हूँ, कभी किसी की, कभी किसी की
नशा, कमसकम, न हो पराया, पिला न साकी कभी किसी की

पता नहीं कौन पी रहा था, नशा मुझे है के आइने को
कभी दिखाता है अक्स मेरा, दिखाए झाँकी कभी किसी की

खुशी मना, बाँट तू मिठाई, के आज घर इक कली पधारी
हनोज़ देखी कहाँ है तू ने घडी बिदा की कभी किसी की

समझ न लो, वाइज़ों, गलत रौ, अगर न सुनके अज़ान जागा
नमाज़ो-रोज़े के आकडों से गिनो न पाकी कभी किसी की

'भँवर', ज़ुबाँ से पलट रहे हैं, नज़र जो मुझ से चुरा रहे हैं
लगे न उनको मेरी तरह से नज़र बला की कभी किसी की  

शनिवार, जनवरी 07, 2012

अभी तो कुछ नहीं सीखा, अभी तो कुछ नहीं जाना

अभी तो कुछ नहीं सीखा, अभी तो कुछ नहीं जाना
ज़रा कमसिन है, डरता है, अभी जलनेसे परवाना

कभी वह खिलखिलाते हैं, कभी, बस, मुस्कराते हैं
अभी बाकी है कुछ बचपन, अभी ताज़ा है शरमाना

मुहब्बत क्या बला है यह, उन्हें कोई बता देना
अभी आलम जवानी का, नया है, दर्द अनजाना

सुराही-साग़रो-मीना कोई माने नहीं रखतें
अगर मेहफ़िल नहीं झूमी, अगर छलका न पैमाना

नशीली हो ग़ज़ल कोई, ज़रा लय भी हो मस्ताना
सुराही आप की गर्दन, हमारे कान रिंदाना

मुहब्बत के समंदर से, 'भँवर' से वह न वाक़िफ़ थे
यकायक आँधियाँ चलने लगी दिल में तो पहचाना

बुधवार, जनवरी 04, 2012

कितनी हैं बोझल साँसें

कितनी हैं बोझल साँसें
हैं गर्दे-मकतल साँसें

क्या सोचूँ मैं बरसों का
जब हैं पल दो पल साँसें

कैसी नाजुक है डोरी
ढाके की मलमल साँसें

रुकने तक चलना लाज़िम
कैसी हैं बेकल साँसें

हम सब हैं नन्हे बच्चें
हैं माँ का आंचल साँसें