बुधवार, नवंबर 14, 2012

राहतेदर्देदिलेनाकाम का मैं क्या करूँ?

राहतेदर्देदिलेनाकाम का मैं क्या करूँ?
तुम नहीं जब साथ तो आराम का मैं क्या करूँ?

पोंछ डाला ज़हन से अब हर निशाँ तेरा, सनम
ले नहीं सकता जिसे उस नाम का मैं क्या करूँ?

ज़ख़्म तो भर जाएँगे, दो-चार दिन की बात है
बेवफाई के तेरे इल्ज़ाम का मैं क्या करूँ?

क्या शबेफुरकत के बारे में अभी से सोचना?
बीच की चट्टान सी इस शाम का मैं क्या करूँ?

अपने आशिक़ को जलाने की हदें भी सोच ले
ख़ाक होने पर मिले पैग़ाम का मैं क्या करूँ?

हर सुबह तर्केगली-ए-हुस्न करता हूँ मगर
हाय, अपनी तबियतेगुलफाम का मैं क्या करूँ?

छोड़ भी सकता नहीं, तोड़े नहीं यह टूटता
ज़हर ही दे दे, के खाली जाम का मैं क्या करूँ?

उसके दर से उठ न पाया हूँ अज़ल से जब ’भँवर’
सोचता रहता हूँ, चारों धाम का मैं क्या करूँ?

आरज़ू उनकी गली की क्या करे कोई?

आरज़ू उनकी गली की क्या करे कोई?
क्या सज़ा दे खुदको, खुद ही क्या मरे कोई?

ताअरूर्फ़ है इक कदम, पहचान है मंज़िल
दायरेदीदार से देखे परे कोई

चाहे जितने हो हँसीं, यह भूल मत जाना
पाँव आखिर पाँव हैं, कब तक धरे कोई

हर सज़ा की कुछ न कुछ मीयाद होती है
एक गलती के लिये कब तक भरे कोई?

एक दिन गंगा नहाना है, ’भँवर’, सबको
पाप धुलही जाएगा, क्यों ना करे कोई?

इश्क़ जलता है तभी मशहूर होती है

इश्क़ जलता है तभी मशहूर होती है
शम्म परवाने बिना बेनूर होती है

सामना उनकी नज़र का क्या करें कोई?
काँच तक देखे से उनके चूर होती है

दिल किसी पर आये तो इज़हार ना करना
वह सितमगर और भी मगरूर होती है

यह कहाँ का इश्क़ है, कैसा विसाल-ए-यार?
वह करीब आती है तब भी दूर होती है

खोजने से देव मिलते हैं, चलो माना
हर परीचेहरा, ’भँवर’, क्या हूर होती है?

यह न पूछो क्यों हुई, किस की बदौलत हो गयी

यह न पूछो क्यों हुई, किस की बदौलत हो गयी
अहलेदिल, इतना समझ लीजे कयामत हो गयी

कुछ हमारी राह में काँटें बिछाए भागने
और कुछ पैरों को शोलों से मुहब्बत हो गयी

इस कदर हम रहगुज़ारेज़िंदगी पर थे फ़िदा
जानिबेमंज़िल नज़र करना मुसीबत हो गयी

इश्क़ पत्थरदिल से कर, जन्नत की फिर क्या फ़िक्र है
सर झुकाया संग के आगे, इबादत हो गयी

बोझ भारी है जवानी, और वह है नातवाँ
हमने थोडी सी मदद की तो शिकायत हो गयी

सूखकर काँटा फज़ा-ए-वस्ल में क्यों हो 'भँवर'?
रात क्या शहदेलबेगुल से अदावत हो गयी?