सोमवार, फ़रवरी 08, 2016

कईं बार ऐसा हुआ मुस्कुराते

कईं बार ऐसा हुआ मुस्कुराते
उमड आये आँसू हँसी आते आते

निगाहों निगाहों में क्या कुछ कहा है
जवानी गुज़रती वह होटों पर आते

जभी जानिब-ए-मंज़िल-ए-इश्क जाते
कभी धुँद छाती, कभी मोड आते

किसी दिन दुबारा मुलाकात होगी
वह झूठी सही, यह तसल्ली दिलाते

ये अंजाम के ख़ौफ से या जुनूँ से
शरारोंभरे दो बदन कपकपाते

रखो सर भरोसे से काँधे हमारे
कटी उम्र सारी जनाज़े उठाते

खयाल आ गया मीर-ओ-ग़ालिब को पढते
’भँवर’ काश हम काफिया यूँ चलाते