tag:blogger.com,1999:blog-24144813550511908842024-03-13T05:59:14.959+05:30सुराहीMilind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.comBlogger119125tag:blogger.com,1999:blog-2414481355051190884.post-12718185310641745022016-04-20T15:43:00.000+05:302016-04-20T16:11:27.106+05:30सोचता हूँ किस तरह पहुँचा हूँ मैं मुल्क-ए-अदम<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
सोचता हूँ किस तरह पहुँचा हूँ मैं मुल्क-ए-अदम<br />
कुछ रकीबों की दुवाएँ, यारों के कुछ हैं करम<br />
<br />
क्या बताऊँ किस तरह, कैसे, कहाँ फिसले कदम<br />
ख़्व्वाब से जागा हूँ कैसे, किस तरह टूटे भरम<br />
<br />
इश्क़ भी करते नहीं वह, जाम भी भरते नहीं<br />
क्या कहें हालत हमारी, होंठ सूखे, आँख नम<br />
<br />
और क्या दोगे सज़ा मुझको मुहब्बत की, हुज़ूर?<br />
बेवफा से प्यार कर बैठा हूँ मैं, क्या यह है कम?<br />
<br />
कामयाबी का कहीं कोई नहीं नामोनिशाँ<br />
फिर लगा बैठे हैं आँखें आसमाँ पर खुशफ़हम<br />
<br />
लाख छोडी, फिर पहुँचती हैं लतें मुझ तक, ’भँवर’<br />
खूब यह पहचानती होंगी मेरे नक्ष-ए-कदम </div>
Milind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2414481355051190884.post-37373509225199611462016-02-08T10:54:00.000+05:302016-02-08T10:54:13.759+05:30कईं बार ऐसा हुआ मुस्कुराते <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: small;">कईं बार ऐसा हुआ मुस्कुराते
<br />उमड आये आँसू हँसी आते आते
<br /><br />निगाहों निगाहों में क्या कुछ कहा है
<br />जवानी गुज़रती वह होटों पर आते
<br /><br />जभी जानिब-ए-मंज़िल-ए-इश्क जाते
<br />कभी धुँद छाती, कभी मोड आते
<br /><br />किसी दिन दुबारा मुलाकात होगी
<br />वह झूठी सही, यह तसल्ली दिलाते
<br /><br />ये अंजाम के ख़ौफ से या जुनूँ से
<br />शरारोंभरे दो बदन कपकपाते
<br /><br />रखो सर भरोसे से काँधे हमारे
<br />कटी उम्र सारी जनाज़े उठाते
<br /><br />खयाल आ गया मीर-ओ-ग़ालिब को पढते
<br />’भँवर’ काश हम काफिया यूँ चलाते </span></div>
Milind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2414481355051190884.post-7583630438053297362015-12-20T22:39:00.000+05:302015-12-20T22:39:33.881+05:30रुक रुक के चल रहा है कारवान-ए-ज़िंदगी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
रुक रुक के चल रहा है कारवान-ए-ज़िंदगी<br />शायद यही है दौर-ए-इम्तहान-ए-ज़िंदगी<br /><br />रुसवा कदम कदम मुझे किया है जीते जी<br />मरघट चली न आये देने ताने ज़िंदगी<br /><br />दुष्मन खडे दराँती हाथ में लिये हुए<br />डर है कहीं लगे न लहलहाने ज़िंदगी<br /><br />कितना कहा के हूँ नहीं शरीक-ए-दौड मैं<br />कोडे लगाये जा रही, न माने ज़िंदगी<br /><br />फ़रियाद भी वही करें, सजा भी दें वही<br />कितने अजीब हैं यह मेंबरान-ए-ज़िंदगी<br /><br />क्यों रहबरों कि खोज में फिरे तू दर-बदर?<br />सबको लगाये एक दिन ठिकाने ज़िंदगी<br /><br />मैं भी न बेरुखी से पेश आऊँ तो कहो<br />आग़ोश में तो आये मुँह छुपाने ज़िंदगी<br /><br />इक उम्र इंतज़ार, एक पल विसाल का<br />इक मौत ही है अस्ल कद्रदान-ए-ज़िंदगी<br /><br />आँखें न पढ सकेंगी, काम दिल से लीजिये<br />अशआर में छुपी है दास्तान-ए-ज़िंदगी</div>
Milind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2414481355051190884.post-42113786522098500982015-06-21T12:40:00.000+05:302015-06-21T12:40:36.373+05:30शराब ना शबाब है, करें बसर तो किस तरह <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
शराब ना शबाब है, करें बसर तो किस तरह
<br />कबाड में बिके सुखन, करें गुजर तो किस तरह
<br /><br />न कान हैं खुले यहाँ, न द्वार मन के हैं खुले
<br />यहाँ किसी की शायरी करे असर तो किस तरह
<br /><br />वह रेत में उठा के नक्षेपा कभी के गुम हुए
<br />कटे तवील ज़िंदगी कि रहगुजर तो किस तरह
<br /><br />अगर घुली हो तलखियाँ शराब में, शबाब में
<br />हरेक लफ्ज़ में भरा न हो ज़हर तो किस तरह
<br /><br />न आँख में नमी ज़रा, न ओस दिल में है 'भँवर'
<br />के बीज इस ज़मीन में बने शजर तो किस तरह
<br /></div>
Milind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2414481355051190884.post-91911414692718739242015-02-21T18:37:00.000+05:302015-02-21T18:37:51.876+05:30रिहाई चाहता हूँ, अब कफस में जी नहीं लगता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
रिहाई चाहता हूँ, अब कफस में जी नहीं लगता<br />बहुत ढूँढा, मगर अपना यहाँ कोई नहीं लगता<br /><br />बुझा जाता हूँ खुद, अब और आँधी की ज़रूरत क्या?<br />उजाला चश्मेतर का क्या तुम्हें फानी नहीं लगता?<br /><br />यह मुफलिस की है बीमारी, इसे मुफलिस ही समझेगा<br />यहाँ से चल, दवाखाना यह खैराती नहीं लगता<br /><br />यह क्यों पेड़ों पर झूलों की जगह लाशें लटकती हैं<br />उसे क्या खाक समझाएँ, वह देहाती नहीं लगता<br /><br />सनम की मरमरी बाहें, तराशासा बदन उसका<br />यह पत्थर वह है जिसमें दूर तक पानी नहीं लगता<br /><br />टटोलो दिल को पहले, नाक-नकशा बाद में देखो<br />अजी, सूरत से खुद शैतान भी पापी नहीं लगता<br /><br />किताबों में पढा था, ज़िंदगी यह खूबसूरत है<br />किताबों का ,'भँवर', हर लफ्ज़ बेमानी नहीं लगता?</div>
Milind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2414481355051190884.post-467526635385393962014-11-06T10:54:00.000+05:302014-11-06T10:54:10.697+05:30ज़िंदगी की दौड में नींद कम, आराम कम <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
ज़िंदगी की दौड में नींद कम, आराम कम
<br />इस लिये दे पाते हम ख़्व्वाब को अंजाम कम
<br /><br />अब खुमार आता नहीं, दर्देदिल जाता नहीं
<br />जाये भी तो किस तरह; ग़म जियादा, जाम कम
<br /><br />फलसफे इस दौर के खुष्क हैं, बेजान हैं
<br />शेख, पंडित हैं बहुत, ग़ालिबोखय्याम कम
<br /><br />साफ ज़ाहिर है कहाँ लोग पाते हैं सुकूँ
<br />बढ रहे हैं मैकदे, हो रहे हैं धाम कम
<br /><br />कौन कहता है, 'भँवर', दौर है महँगाई का?
<br />हो रहा है दिनबदिन आदमी का दाम कम </div>
Milind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2414481355051190884.post-44700079486700331752014-07-29T18:02:00.000+05:302014-07-29T18:02:45.572+05:30तजुर्बों कि तल्खी, खयालों कि मिसरी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
तजुर्बों कि तल्खी, खयालों कि मिसरी
<br />ग़ज़ल इन से होकर ही काग़ज पर उतरी
<br /><br />दवात-ओ-कलम से अगर बात बनती
<br />तो शाइर न मिलते कचहरी कचहरी?
<br /><br />ढली हुस्न के साथ पाबंदियाँ भी
<br />कभी खंडरों पर भी होते हैं पहरी?
<br /><br />जरा अपने दामन में झाँको, तो जानो
<br />न हो दाग ऐसी नहीं कोई चुनरी
<br /><br />सफर खत्म होने को है, पर न समझा
<br />कहाँ वक़्त ठहरा, कहाँ उम्र गुजरी
<br /><br />'भँवर', दिन गुजरते चले जा रहे हैं
<br />मगर ज़िंदगी है के ठहरी कि ठहरी </div>
Milind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2414481355051190884.post-62307780590809820312014-04-30T18:09:00.000+05:302014-04-30T18:09:30.877+05:30वह हँसी रात भी आखिर को वहम की निकली <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;">वह हँसी रात भी आखिर को वहम की निकली
<br />जो नज़र प्यार की समझा वह रहम की निकली
<br /><br />जब गलत राह पे चलने कि वजह को ढूँढा
<br />बात उन मिटते हुए नक्षेकदम की निकली
<br /><br />घर जलें, लोग जलें, फिर से अमन खाक हुआ
<br />आग देखी तो वही दीन-धरम की निकली
<br /><br />बुतपरस्तीमें कहीं रात गुज़र ना जाये
<br />बेवजह बात ज़नानेमें हरम की निकली
<br /><br />चार दिन साथ रही, लौट गयी घर अपने
<br />हूर कोई वह, 'भँवर', मुल्केअदम की निकली
<br /></span></div>
Milind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2414481355051190884.post-36341834656952057252013-10-21T14:08:00.000+05:302013-10-21T14:08:36.699+05:30लगाओ ना गले मुझको, बहारो <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
लगाओ ना गले मुझको, बहारो
<br />कहीं तुम भी न मुरझाओ, बहारो
<br /><br />टली है ना कभी पतझड टलेगी
<br />खिलो लेकिन न इतराओ, बहारो
<br /><br />कली को फूल करना चाहते हो
<br />इरादा क्या है बतलाओ, बहारो
<br /><br />कभी गुलशन, कभी सहरा बनाया
<br />यह हमसे दिल्लगी छोडो, बहारो
<br /><br />दरख़्तों की ज़रा लग जाये आँखें
<br />कली की मुष्किलें समझो, बहारो
<br /><br />चुभन मीठी हो उनकी, ज़ख़्म महकें
<br />कभी काँटों पे भी छाओ, बहारो
<br /><br />बदन को हम, चलो, समझा ही देंगे
<br />मगर दिल से तो ना जाओ, बहारो
<br /><br />गुलिस्ताँ में 'भँवर' होंगे न होंगे
<br />खिजाँ के बाद जब आओ, बहारो
<br /></div>
Milind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2414481355051190884.post-37215760822483469982013-10-21T13:58:00.000+05:302013-10-21T13:58:34.152+05:30पता तो चले की वो क्या कह रहे हैं <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
पता तो चले की वो क्या कह रहे हैं
<br />लबों पर हँसीं, अश्क भी बह रहे हैं
<br /><br />सभी को फिकर ईंट-पत्थर के घर की
<br />ज़रा देख लो, आदमी ढह रहे हैं?
<br /><br />दिलों में ज़हर क्यों भरे जा रहे हो?
<br />यहाँ आज भी आदमी रह रहे हैं
<br /><br />मुनासिब समझ लो तो आँखें मिलाओ
<br />गले से लगाने को कब कह रहे हैं?
<br /><br />मुझे बात बढती नजर आ रही है
<br />न "हाँ" कह रहे हैं, न "ना" कह रहे हैं
<br /><br />अभी ज़िंदगी से नहीं मात खायी
<br />कई ज़ख़्म खाये, कई शह सहे हैं
<br /><br />'भँवर', ढाल लेते हो ग़म को ग़ज़ल में
<br />हज़ारों यहाँ बेजुबाँ सह रहे हैं </div>
Milind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2414481355051190884.post-30430108257945870272013-08-29T21:54:00.000+05:302013-08-29T21:54:57.672+05:30मुहब्बत की करूँ बातें, ये मुझसे हो नहीं सकता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मुहब्बत की करूँ बातें, ये मुझसे हो नहीं सकता<br />
किसी कीमत पे आज़ादी मैं अपनी खो नहीं सकता<br />
<br />
निगाहें क्या झुकायँगे गुरूर-ए-हुस्न है जिनको<br />
झुकाये बिन मगर इकरार भी तो हो नहीं सकता<br />
<br />
शरीक-ए-ग़म मिला कोई, चलो, ये बात अच्छी है<br />
मगर इस वास्ते तो उम्रभर मैं रो नहीं सकता<br />
<br />
अजी, अब क्या बताऊँ क्यों चुराता हूँ नज़र उनसे<br />
छुरी है खूबसूरत इस लिये मर तो नहीं सकता<br />
<br />
'भँवर' अब हसरत-ए-नाकाम पे रोने से बाज़ आ जा<br />
लिखा तकदीरका तू आँसुओंसे धो नहीं सकता </div>
Milind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2414481355051190884.post-50977559008439949022013-07-01T23:39:00.000+05:302013-07-01T23:39:25.324+05:30सीने से जो ना लगाए ज़ख्म मेरेसीने से जो ना लगाए ज़ख्म मेरे <br />क्यों वफ़ा उनसे निभाए ज़ख्म मेरे<br /><br />यह न समझो बेसबब हसती है ज़ालिम<br />गाहे गाहे याद आए ज़ख्म मेरे<br /><br />बारहा मरहम लगाए, फिर कुरेदे<br />बारहा वह आजमाए ज़ख्म मेरे<br /><br />एक मंडी, बेचनेवालों करोडों <br />खूब मैंने भी सजाए ज़ख्म मेरे <br /><br />जल्द आओ, दाम उतरे हैं नमक के<br />ग़मगुसारों, भर न जाए ज़ख्म मेरे<br /><br />बेनियाज़ी, बददिमागी, बदशिआरी<br />पैरहन क्या क्या चढाए ज़ख्म मेरे<br /><br />मुझको तनहाई का कोई डर नहीं है<br />दिलमें हैं मेहफिल जमाए ज़ख्म मेरे<br /><br />हैसियत मेरी, 'भँवर', कुछ कम नहीं है<br />गर महल उनके, सरा-ए-ज़ख्म मेरे Milind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2414481355051190884.post-20740820510536521152013-05-24T12:32:00.000+05:302013-05-24T12:32:13.566+05:30हर किसी की आँखों में भीगासा है मंज़र कोई <span style="font-size: large;">हर किसी की आँखों में भीगासा है मंज़र कोई<br />पर-कटे ख़्व्वाबों पे शायद रो रहा है हर कोई<br /><br />इस कदर बदनाम नेताओंने उसको कर दिया<br />अब न पहनेगा हमारे देश में खद्दर कोई<br /><br />आनेवाली नस्लों से क्या हम कभी कह पाएँगे </span><br />
<span style="font-size: large;">"आज है गुलशन जहाँ, कल थी ज़मीं बंजर कोई" <br /><br />लढने-मरने के लिये इक लफ्ज़ काफी है यहाँ<br />शै वही है, कह रहा है बुत कोई, पत्थर कोई<br /><br />ले गया जिस सिम्त दिल, चलते गये मेरे कदम<br />राह से मतलब उन्हे जिनको मिला रहबर कोई<br /><br />फिर हुआ इन्सानियत का भूत सर मेरे सवार<br />फिर उतारो आके मेरे पीठ में खंजर कोई <br /><br />दश्त-ए-सहरा से मुकर्रर की सदा आती रही<br />हो न हो, उस पर से गुज़रा है नया शायर कोई<br /><br />किस लिये मातम, 'भँवर', अब जश्न होना चाहिये<br />ढूँढती है रूह घर इस जिस्म से बेहतर कोई </span>Milind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2414481355051190884.post-89918268677738393852013-05-13T15:57:00.000+05:302013-05-13T16:24:35.949+05:30ताउम्र चलने के सिवा चारा नहीं है<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://farm8.staticflickr.com/7010/6667140591_41d05a7bc2_z.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://farm8.staticflickr.com/7010/6667140591_41d05a7bc2_z.jpg" height="267" width="400" /></a></div>
<br />
<br />
ताउम्र चलने के सिवा चारा नहीं है<br />
है कौन जो इस राह का मारा नहीं है?<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<br />
दुनिया न रोशन कर सका तू, ना सही, पर<br />
क्या तू किसी की आँख का तारा नहीं है?<br />
<br />
है आग की लपटों में तेरी ज़िंदगी तो<br />
खुशियाँ मना, जीवन में अँधियारा नहीं है<br />
<br />
खुशबू पसीने की बदन से आ रही है<br />
कहती है, यह इन्सान नाकारा नहीं है<br />
<br />
रुख मोड लेती है मगर रुकती नहीं है<br />
क्या ज़िंदगी बहती हुई धारा नहीं है?<br />
<br />
माना 'भँवर' मंज़िल तलक पहुँचा नहीं है<br />
वह राह में भटका है, आवारा नहीं है<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<a href="http://www.flickr.com/photos/pushkarv/6667140591/">Photograph</a> by <a href="http://www.flickr.com/photos/pushkarv/">Pushkar V</a>. Used under <a href="http://creativecommons.org/licenses/by-nc-nd/2.0/">Creative Commons license</a>.Milind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2414481355051190884.post-3495038167178079212013-04-05T13:02:00.000+05:302013-04-05T13:02:37.458+05:30एक पल आयी नजर घूँघट से सूरत आप की एक पल आयी नजर घूँघट से सूरत आप की
<br />यह हवा का खेल था या फिर इनायत आप की?
<br /><br />चैन छीने, नींद भी छीने मुहब्बत आप की
<br />सोचता हूँ, क्या बला होगी अदावत आप की
<br /><br />कम न थे पहले ही मसलें दीन-ओ-जान-ओ-माल के
<br />इस पे जाहिर हो गयी दुनिया पे सोहबत आप की
<br /><br />जंग खेली थी यह हमने हारने के वास्ते
<br />जी, हमें मंजूर है दिल पे हुकूमत आप की
<br /><br />पहले सोचा, आप का दीदार सुबहोशाम हो
<br />फिर खयाल आया कि लग जाए न आदत आप की
<br /><br />इक जरा झोंका हवा का छू गया क्या आप को
<br />इस तरह सिमटी कि हो खतरे में इज़्ज़त आप की
<br /><br />आप के दर पे खड़े हैं हाथ फैलाए हुए
<br />यह दुवा दे दो, "रहे जोडी सलामत आप की"
<br /><br />लाख दामन को बचाया, फिर भी मैला हो गया
<br />देर से जाना, 'भँवर', खोटी है नीयत आप की
<br /><br />Milind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2414481355051190884.post-71658424035471484112013-03-16T21:38:00.003+05:302013-03-16T21:51:04.438+05:30इतनी वजह है काफी उनको पुकारने को<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;">इतनी वजह है काफी उनको पुकारने को<br />कोई ग़म नहीं है बाकी शेरों में ढालने को<br /><br />मुड़तें थे पाँव घर को, यह प्यार था किसी का <br />वरना मकाँ कई थे रातें गुजारने को<br /><br />यह जानती है शायद दरपर खडी बलाएँ <br />अब तू यहाँ नहीं है नज़रें उतारने को<br /><br />सौ बार दिल की बाज़ी, बेशक, लगा चुका हूँ <br />पर मैं नहीं युधिष्ठिर हर दाँव हारने को<br /><br />वह जा रहा है बचपन, वह आ रहा बुढापा<br />कुछ पल ही बीच में हैं अरमाँ निकालने को<br /><br />दुनिया के रहगुज़ारोंमें कुछ तो बात हो<span style="font-size: large;">गी</span> <br />आये-गये हैं कितने यह ख़ाक छानने को<br /><br />दो दिन जिन्हें हैं जीना उनको हो गुल मुबारक<br />हमने चुने हैं काँटें जीवन सँवारने को... <br /><br /> </span></div>
Milind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2414481355051190884.post-8993241823940347312013-01-30T23:26:00.000+05:302013-01-30T23:26:17.217+05:30कुछ ज़ियादा माँग तो बैठा नहीं भगवान से?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;">कुछ ज़ियादा माँग तो बैठा नहीं भगवान से?<br />आदमी बनकर मिले हर आदमी इन्सान से<br /><br />सुन रहा हूँ देश ने की है तरक्की इस कदर<br />है दिवाली के दिये भी चीन से, जापान से<br /><br />ज़हमत-ए-आतंक करता है पडोसी किस लिये?<br />हैं लगे इस काम में अहल-ए-वतन जी जान से<br /><br />वाइज़ों को सर चढाने का नतीजा देख लो<br />मकतलों में शोर है, है मैकदें वीरान से<br /><br />या हटा दे बादलों को, या थकी लौ को बुझा<br />कब तलक लड़ते रहेंगे हम दिये तूफान से?<br /><br />औरतें बेखौफ होकर चल नहीं पाती यहाँ<br />कब मिटेगा दाग यह रुखसार-ए-हिंदोस्तान से?<br /><br />नौ-लखे से एक मोती को मिलाकर देख लो<br />शेर के जज़्बात भी कुछ कम नहीं दीवान से </span></div>
Milind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2414481355051190884.post-78003794485792859732012-12-23T16:56:00.001+05:302012-12-23T16:56:58.823+05:30पूछते हैं लोग क्यों नाशाद मेरे गीत हैं <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
पूछते हैं लोग क्यों नाशाद मेरे गीत हैं
<br />हसरत-ए-नाकाम की फरयाद मेरे गीत हैं
<br /><br />मैं तो लिखता हूँ के ग़मगीं दिल बहल जाए ज़रा
<br />फिर रुलाते हैं मुझे, जल्लाद मेरे गीत हैं
<br /><br />फलसफा कोई नहीं, ना धर्म की बारीकियाँ
<br />सिर्फ़ तेरी रहमतों की याद मेरे गीत हैं
<br /><br />आप के होटोंने दोनो को दीवाना कर दिया
<br />एक मैं हूँ, और मेरे बाद मेरे गीत हैं
<br /><br />सीख इज़हार-ए-मुहब्बत की उन्हीं से पायी है
<br />मैं तो भोला था मगर उस्ताद मेरे गीत हैं
<br /><br />यूँ तो ग़म को आँसुओंसे नापने की रीत है
<br />पर यहाँ तो रंज की तादाद मेरे गीत हैं
<br /><br />कौन लगता हूँ किसीका, यह मेरा तार्रुफ़ नहीं
<br />मेरी हस्ती की असल बुनयाद मेरे गीत हैं
<br /><br />तू जला बेशक मेरे दीवान को, मेरे उदू
<br />उनके दिल में आज भी आबाद मेरे गीत हैं
<br /><br />जब फलक मुझको पुकारे, शायरी पर देती है
<br />मुझपर सौ पाबंदियाँ, आज़ाद मेरे गीत हैं
<br /><br />कम से कम, दो-चार पल कुछ ग़ौर कर लेते, 'भँवर'
<br />कोई अफ़साना नहीं, रूदाद मेरे गीत हैं </div>
Milind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2414481355051190884.post-63504863665857443542012-12-08T14:25:00.000+05:302012-12-08T14:25:32.406+05:30यह मौत भी क्या चीज़ है, यह सोचने की बात है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
यह मौत भी क्या चीज़ है, यह सोचने की बात है<br />क्या खत्म हो जाता है सब, या इक नयी शुरूआत है<br /><br />डोली उठाकर जिस्म की साँसें कहारों की तरह<br />ससुराल तक पहुँचाती हैं; कैसी अजब बारात है<br /><br />या बुतपरस्ती का चलन, या बुतशिकन की भीड है<br />कोई जगह तो हो जहाँ हम सिर्फ़ आदमज़ात है<br /><br />झाँकों गिरेबाँ में ज़रा, कोसो नहीं भगवान को<br />क्या पूछते हो, क्या दिया; हर साँस इक सौगात है<br /><br />मायूस होकर लौटता है हर सवाली आज कल<br />उम्मीद हक़ की क्या करें, मिलती नहीं खैरात है<br /><br />इस आसमान-ए-शायरी का तुझको अंदाज़ा नहीं<br />उतना ही उँचा उड, 'भँवर', जितनी तेरी औकात है </div>
Milind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2414481355051190884.post-5501744392947407912012-12-08T14:21:00.000+05:302012-12-08T14:21:46.483+05:30हर नये शायर से निर्लज आशना निकली<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
हर नये शायर से निर्लज आशना निकली<br />रोशनी-ए-शम्म-ए-मेहफिल बेवफ़ा निकली<br /><br />कल कोई था, आज हम हैं, कल कोई होगा<br />प्यार समझे थे जिसे हम, वह अदा निकली<br /><br />हमने भी किस को सुनाये प्यार के नग़्में<br />वह लगी इस्लाह करने, शायरा निकली<br /><br />घर कभी था; उम्रभर को बन गया जिंदाँ<br />हाल-ए-दिल उनको बयाँ करना खता निकली<br /><br />फिर खयालों और लब्ज़ों में रही दूरी<br />आज फिर हम से ग़ज़ल दामन बचा निकली </div>
Milind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2414481355051190884.post-48066769869066167212012-11-14T14:05:00.000+05:302012-11-14T14:05:16.729+05:30राहतेदर्देदिलेनाकाम का मैं क्या करूँ?राहतेदर्देदिलेनाकाम का मैं क्या करूँ?<br />तुम नहीं जब साथ तो आराम का मैं क्या करूँ?<br /><br />पोंछ डाला ज़हन से अब हर निशाँ तेरा, सनम<br />ले नहीं सकता जिसे उस नाम का मैं क्या करूँ?<br /><br />ज़ख़्म तो भर जाएँगे, दो-चार दिन की बात है<br />बेवफाई के तेरे इल्ज़ाम का मैं क्या करूँ?<br /><br />क्या शबेफुरकत के बारे में अभी से सोचना?<br />बीच की चट्टान सी इस शाम का मैं क्या करूँ?<br /><br />अपने आशिक़ को जलाने की हदें भी सोच ले<br />ख़ाक होने पर मिले पैग़ाम का मैं क्या करूँ?<br /><br />हर सुबह तर्केगली-ए-हुस्न करता हूँ मगर<br />हाय, अपनी तबियतेगुलफाम का मैं क्या करूँ?<br /><br />छोड़ भी सकता नहीं, तोड़े नहीं यह टूटता<br />ज़हर ही दे दे, के खाली जाम का मैं क्या करूँ?<br /><br />उसके दर से उठ न पाया हूँ अज़ल से जब ’भँवर’<br />सोचता रहता हूँ, चारों धाम का मैं क्या करूँ?Milind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2414481355051190884.post-58083567298626911872012-11-14T13:19:00.000+05:302012-11-14T13:19:24.048+05:30आरज़ू उनकी गली की क्या करे कोई?आरज़ू उनकी गली की क्या करे कोई?<br />क्या सज़ा दे खुदको, खुद ही क्या मरे कोई?<br /><br />ताअरूर्फ़ है इक कदम, पहचान है मंज़िल<br />दायरेदीदार से देखे परे कोई<br /><br />चाहे जितने हो हँसीं, यह भूल मत जाना<br />पाँव आखिर पाँव हैं, कब तक धरे कोई<br /><br />हर सज़ा की कुछ न कुछ मीयाद होती है<br />एक गलती के लिये कब तक भरे कोई?<br /><br />एक दिन गंगा नहाना है, ’भँवर’, सबको<br />पाप धुलही जाएगा, क्यों ना करे कोई?Milind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2414481355051190884.post-87510589157983687172012-11-14T13:09:00.000+05:302012-11-14T13:09:48.277+05:30इश्क़ जलता है तभी मशहूर होती हैइश्क़ जलता है तभी मशहूर होती है<br />शम्म परवाने बिना बेनूर होती है<br /><br />सामना उनकी नज़र का क्या करें कोई?<br />काँच तक देखे से उनके चूर होती है<br /><br />दिल किसी पर आये तो इज़हार ना करना<br />वह सितमगर और भी मगरूर होती है<br /><br />यह कहाँ का इश्क़ है, कैसा विसाल-ए-यार?<br />वह करीब आती है तब भी दूर होती है<br /><br />खोजने से देव मिलते हैं, चलो माना<br />हर परीचेहरा, ’भँवर’, क्या हूर होती है?Milind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2414481355051190884.post-60074295385859992062012-11-14T12:58:00.000+05:302012-11-14T12:58:43.634+05:30यह न पूछो क्यों हुई, किस की बदौलत हो गयी<div style="text-align: center;">
यह न पूछो क्यों हुई, किस की बदौलत हो गयी<br />अहलेदिल, इतना समझ लीजे कयामत हो गयी<br /><br />कुछ हमारी राह में काँटें बिछाए भागने<br />और कुछ पैरों को शोलों से मुहब्बत हो गयी<br /><br />इस कदर हम रहगुज़ारेज़िंदगी पर थे फ़िदा<br />जानिबेमंज़िल नज़र करना मुसीबत हो गयी<br /><br />इश्क़ पत्थरदिल से कर, जन्नत की फिर क्या फ़िक्र है<br />सर झुकाया संग के आगे, इबादत हो गयी<br /><br />बोझ भारी है जवानी, और वह है नातवाँ <br />हमने थोडी सी मदद की तो शिकायत हो गयी<br /><br />सूखकर काँटा फज़ा-ए-वस्ल में क्यों हो 'भँवर'?<br />रात क्या शहदेलबेगुल से अदावत हो गयी? </div>
Milind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2414481355051190884.post-42706794595627648672012-10-13T16:01:00.000+05:302012-10-13T16:01:49.839+05:30रोशनी होगी, सहर की राह देखो<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;">रोशनी होगी, सहर की राह देखो<br />मुफ़्लिसों, अहलेवतन की चाह देखो<br /><br />राह लंबी थी, कड़ी थी धूप लेकिन<br />लो, नज़र आने लगा है गाह, देखो<br /><br />ख्वाहिशें कुछ रह गयी तो ग़म न करना<br />रामजी को भी मिला ना माह, देखो<br /><br />अपनी तनहाई में यादों को टटोलों<br />हो वहीं शायद कोई हमराह, देखो<br /><br />फिर कोई मासूम बच्चा हँसके बोला<br />आज फिर निकला है नंगा शाह, देखो<br /><br />है भलाई दूर रहनेमें 'भँवर'से<br />डूब जाओ ना कहीं नागाह, देखो </span></div>
Milind Phansehttp://www.blogger.com/profile/02636358796782148973noreply@blogger.com2