हमें काफिर कहे वह जो खुदा हो
चलो, फिर आपसेही इब्तिदा हो
कहें कैसे, पिलाते हो नज़रसे ?
अगर बदनाम हो तो मैकदा हो
गुनाहे-इश्क़ है, काज़ी बुलाओ
उमरभर की सज़ा बाकायदा हो
हमें तो सर झुकाने से है मतलब
दर-ए-जाना, हरम, या बुतकदा हो
पुकारा आपने, कैसे यकीं हो ?
किसी दीवार से लौटी सदा हो...
न दौलत माँगते हैं हम, न जन्नत
हमारा हक़ बने उतना अदा हो
सहा जाता नहीं मिलना, बिछडना
हमेशा के लिए अब अलविदा हो
गुलों, वाक़िफ़ करो लुत्फ़-ए-शहद से
'भँवर'को इश्क़ से कुछ फायदा हो