इस कदर नाकामियोंसे प्यार था
ज़िंदगी की दौडसे इन्क़ार था
है पुराना बाढ आने का चलन
मेरी गलती है की मैं मँज़धार था
भूक़ से बेहाल होकर मर गया
लोग कहते हैं कोई खुद्दार था
फूल तू, गुलशन गली तेरी मगर
लौटकर देखा, जिगरमें खार था
ग़म न कर जो तेरे ग़ममें मर गया
खुदकुशी थी, तू तो बस औज़ार था
करवटें बदली हैं तेरी याद में
ख़्व्वाबमें भी तेराही रुखसार था
यह न समझो बस ज़रासी थी झलक
पद्मिनी के वासते जोहार था
लाख टोका, बेशरम फिर आ गया
क्या करे, यमदूत भी लाचार था
3 टिप्पणियां:
भूक़ से बेहाल होकर मर गया
लोग कहते हैं कोई खुद्दार था
फूल तू, गुलशन गली तेरी मगर
लौटकर देखा, जिगरमें खार था
Bahut khoob.
भूख से बेहाल होकर मर गया
लोग कहते हैं कोई खुद्दार था
बहुत खूब मिलिंद जी। प्रशंसनीय।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
मिलिंद जी आपने बड़ी ही खूबसूरती से शब्दों को पिरोया है ..इस ग़ज़ल में !प्रस्तुती बहुत अच्छी लगी..
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