किसी दिन कहीं मेल होगा यकीनन
मुहब्बत नहीं सिर्फ़ धोखा यकीनन
नयी सोच दीवारसे क्या रुकेगी
मिलेगा हवा को झरोखा यकीनन
सुकून-ए-जिगर अब तलक मिल न पाया
अभी चेहरे पर है गोषा यकीनन
बहारोंमें हम सर्द आहों के मारे
किसी संगदिल का है बोसा यकीनन
खुली नींद क्यों शेषशायी तुम्हारी ?
"कन्हैया!", पुकारे यशोदा यकीनन
रदाफ़ी पुरानी, तखय्युल पुराने
है अंदाज़ लेकिन अनोखा यकीनन
लब-ए-गुल हो शीरीं, खतरनाक भी हैं
'भँवर' को शहदमें डुबोया यकीनन
2 टिप्पणियां:
बहुत ही बेहतरीन गजल है।बधाई स्वीकरें।
rachnaa achhee hai
sambhaavnaaein aur bhi hain .
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