शनिवार, अक्टूबर 13, 2012

रोशनी होगी, सहर की राह देखो

रोशनी होगी, सहर की राह देखो
मुफ़्लिसों, अहलेवतन की चाह देखो

राह लंबी थी, कड़ी थी धूप लेकिन
लो, नज़र आने लगा है गाह, देखो

ख्वाहिशें कुछ रह गयी तो ग़म न करना
रामजी को भी मिला ना माह, देखो

अपनी तनहाई में यादों को टटोलों
हो वहीं शायद कोई हमराह, देखो

फिर कोई मासूम बच्चा हँसके बोला
आज फिर निकला है नंगा शाह, देखो

है भलाई दूर रहनेमें 'भँवर'से
डूब जाओ ना कहीं नागाह, देखो 

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

भाई आप का ब्लॉग देख कर तबीयत खुश हो गई !! मुबारक हो आप को अपना ये ज़वक़ !! अगर आप टेंप्लेट मे थोड़े चेंजेस लाते हो तो ये बहुत खूबसूरत हो जाएगा !!

डा सैफ क़ाज़ी

www.nuqoosh.blogspot.com
twitter.com/happysaif

Milind Phanse ने कहा…

शुक्रिया, डॉक्टरसाहब. आपका ब्लॉग देखा, लेकिन उर्दू लिपी ना आने के कारण पढ ना सका. :( खैर, जब सीखूँगा, तो फिर आकर ज़रूर पढूँगा.