हर किसी की आँखों में भीगासा है मंज़र कोई
पर-कटे ख़्व्वाबों पे शायद रो रहा है हर कोई
इस कदर बदनाम नेताओंने उसको कर दिया
अब न पहनेगा हमारे देश में खद्दर कोई
आनेवाली नस्लों से क्या हम कभी कह पाएँगे
"आज है गुलशन जहाँ, कल थी ज़मीं बंजर कोई"
लढने-मरने के लिये इक लफ्ज़ काफी है यहाँ
शै वही है, कह रहा है बुत कोई, पत्थर कोई
ले गया जिस सिम्त दिल, चलते गये मेरे कदम
राह से मतलब उन्हे जिनको मिला रहबर कोई
फिर हुआ इन्सानियत का भूत सर मेरे सवार
फिर उतारो आके मेरे पीठ में खंजर कोई
दश्त-ए-सहरा से मुकर्रर की सदा आती रही
हो न हो, उस पर से गुज़रा है नया शायर कोई
किस लिये मातम, 'भँवर', अब जश्न होना चाहिये
ढूँढती है रूह घर इस जिस्म से बेहतर कोई
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