मुहब्बत की करूँ बातें, ये मुझसे हो नहीं सकता
किसी कीमत पे आज़ादी मैं अपनी खो नहीं सकता
निगाहें क्या झुकायँगे गुरूर-ए-हुस्न है जिनको
झुकाये बिन मगर इकरार भी तो हो नहीं सकता
शरीक-ए-ग़म मिला कोई, चलो, ये बात अच्छी है
मगर इस वास्ते तो उम्रभर मैं रो नहीं सकता
अजी, अब क्या बताऊँ क्यों चुराता हूँ नज़र उनसे
छुरी है खूबसूरत इस लिये मर तो नहीं सकता
'भँवर' अब हसरत-ए-नाकाम पे रोने से बाज़ आ जा
लिखा तकदीरका तू आँसुओंसे धो नहीं सकता
किसी कीमत पे आज़ादी मैं अपनी खो नहीं सकता
निगाहें क्या झुकायँगे गुरूर-ए-हुस्न है जिनको
झुकाये बिन मगर इकरार भी तो हो नहीं सकता
शरीक-ए-ग़म मिला कोई, चलो, ये बात अच्छी है
मगर इस वास्ते तो उम्रभर मैं रो नहीं सकता
अजी, अब क्या बताऊँ क्यों चुराता हूँ नज़र उनसे
छुरी है खूबसूरत इस लिये मर तो नहीं सकता
'भँवर' अब हसरत-ए-नाकाम पे रोने से बाज़ आ जा
लिखा तकदीरका तू आँसुओंसे धो नहीं सकता
1 टिप्पणी:
सुंदर गज़ल , मिलिंद जी । सारी पंक्तियां प्रभावित करने वाली
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