वह हँसी रात भी आखिर को वहम की निकली
जो नज़र प्यार की समझा वह रहम की निकली
जब गलत राह पे चलने कि वजह को ढूँढा
बात उन मिटते हुए नक्षेकदम की निकली
घर जलें, लोग जलें, फिर से अमन खाक हुआ
आग देखी तो वही दीन-धरम की निकली
बुतपरस्तीमें कहीं रात गुज़र ना जाये
बेवजह बात ज़नानेमें हरम की निकली
चार दिन साथ रही, लौट गयी घर अपने
हूर कोई वह, 'भँवर', मुल्केअदम की निकली
जो नज़र प्यार की समझा वह रहम की निकली
जब गलत राह पे चलने कि वजह को ढूँढा
बात उन मिटते हुए नक्षेकदम की निकली
घर जलें, लोग जलें, फिर से अमन खाक हुआ
आग देखी तो वही दीन-धरम की निकली
बुतपरस्तीमें कहीं रात गुज़र ना जाये
बेवजह बात ज़नानेमें हरम की निकली
चार दिन साथ रही, लौट गयी घर अपने
हूर कोई वह, 'भँवर', मुल्केअदम की निकली
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