बढी बात जब बातही बातमें
हसीं शाम ढलने लगी रातमें
न पर्दा उठाओ, कसम है तुम्हे
मिले ना जुनूँ और जज़्बातमें
तमन्ना जवाँ क्यों न होने लगे ?
झुकाये नज़र वह मुलाकातमें
कहीं फूल का बस बहाना न हो
कहीं दिल दिया हो न सौगातमें
समझ लो है आतिश मुहब्बतजनी
अगरचे लगे आग बरसातमें
अगर जीत लो तुम, मुझे है खुशी
तुम्हे क्या मिलेगा मेरी मातमें ?
'भँवर', ख्व्वाब गुलज़ार होने लगे
उन्हें बो लिया है खयालातमें
2 टिप्पणियां:
BEHATAREEN RACHNA. BADHAAI.
bahut achhaa prayaas hai
bhaav bahut prabhaavit karte haiN
badhaaee
एक टिप्पणी भेजें