तुम न आये, न कासिदो-खत तक
दिल तडपता रहा कयामत तक
ज़ुल्म चुपचाप क्यों सहें हमने ?
अब तो मुमकिन नहीं शिकायत तक
अज़लसे हुस्नका अलम दिलपर
कर चुके दिलजलें बगावत तक
ज़ुल्म का दौर है अभी जारी
बात पहुँची कहाँ इनायत तक ?
साथ देना, चलो, नहीं मुमकिन
आप करते नहीं हिमायत तक
फिर तुम्हारा खयाल आया है
फिर हमें ले चले न गुरबत तक
इश्कमें क्या नहीं, 'भँवर', छोडा
शर्म क्या, छोड दी शराफत तक
2 टिप्पणियां:
behatareen/lajawaab.
बहोत खूब...
एक टिप्पणी भेजें