क्या हुआ गर आँख उसकी नम नहीं ?
यह पुरानी याद का मौसम नहीं
दूर तक हो फूल नज़रेयारमें
क्या हुआ गर गुलशनोमें हम नहीं ?
उन लबों पर वस्ल की हो सुर्खियाँ
आशिकोंकी मौत का मातम नहीं
दर्द उतना दो जिसे मैं सह सकूँ
आदमी हूँ; देवता, बरहम नहीं
और तोहफ़ा क्या उसे मैं दूँ, 'भँवर' ?
यार का सहरा लिखा यह कम नहीं
4 टिप्पणियां:
और तोहफ़ा क्या उसे मैं दूँ, 'भँवर' ?
यार का सहरा लिखा यह कम नहीं
bahut khoob. behatareen.
दर्द उतना दो जिसे मैं सह सकूँ
आदमी हूँ; देवता, बरहम नहीं
--वाह क्या बात है।
दर्द उतना दो जिसे मैं सह सकूँ
आदमी हूँ; देवता, बरहम नहीं
सुबहान अल्ला! क्या बात कही है!
huzoor !!
bahut achhee gzl kahee hai
ek-ek sher dil meiN utartaa hai
ehsaas ka saleeqe.mnd izhaar .
"muskraati-si gazal ye aapki,
ab kisi deewaan se bhi km nahee"
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