दिल टूटने का जैसे दस्तूर हो गया है
बरबादियों का किस्सा मशहूर हो गया है
अब जाके साहिलों का मैं दर्द जान पाया
कोई करीब आकर फिर दूर हो गया है
कैसे निजात पाऊँ मैं दर्दोरंजोग़मसे ?
मेरा रकीब उनका सिंदूर हो गया है
कोई गवाह होता दिल टूटने का, या रब
इल्ज़ामेबेवफाई मंजूर हो गया है
जब कोई शै जलेगी, होगा तभी उजाला
शायद इसीलिये दिल मजबूर हो गया है
2 टिप्पणियां:
कैसे निजात पाऊँ मैं दर्दोरंजोग़मसे ?
मेरा रकीब उनका सिंदूर हो गया है
wah, bahut badhia.
अब जाके साहिलों का मैं दर्द जान पाया
कोई करीब आकर फिर दूर हो गया है
वाह! बहोत खूब... मजा आ गया...
मिल्या मस्त रे! संपूर्ण गज़लच सही आहे. पण सगळ्यात बेश्ट शेर हाच!
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