फूल बरसों तक चढाएँ पत्थरोंपर
नाम तब आया हमारा उन लबोंपर
प्यास दिल कि कब बुझी है आँसुओंसे ?
कम नहीं था वरना पानी आरिज़ोंपर
यह दुवा है उम्रभर वह मुस्कुराए
जान भी कुरबान ऐसी हसरतोंपर
क्या चलन बदला हुआ है मौसमोंका ?
क्यों ख़िज़ाँ छाने लगी है कोंपलोंपर ?
आँधियोंने फिर हमारी लाज रख ली
डूबते हम जा रहे थे साहिलोंपर
1 टिप्पणी:
behatareen.
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