कई सदियोंसे बैठे हम खुशी की राह तकतें हैं
बिताने को शबेफुरकत ग़मोंके जाम चखतें हैं
खुली आँखोंसे हम पूजा किसीकी कर नहीं सकतें
पुराने मंदिरोंके बुत ज़रा टुटेसे लगतें हैं
बडा आसान होता है किसीसे प्यार कर लेना
हमें देखो, यही गलती हज़ारों बार करतें हैं
तुम्हारी शानमें गुस्ताख़ियाँ करतें रहें अब तक
तुम्हारी शानमें, लो, आज कुछ अशआर कहतें हैं
तेरा छूना नहीं है लाज़मी गुँचें चटकने को
'भँवर', तेरे बिना भी अनगिनत गुलज़ार खिलतें हैं
1 टिप्पणी:
badhia , badhai.
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