मरकर सही, दिल को ज़रा आराम आया
इन्कार भी , उनका, चलो , कुछ काम आया
उनकी गली की ख़ाक भी कहने लगी है
फिरसे मुहल्ले में वही बदनाम आया
सो ले ज़रा हम ओढकर चादर कफन की
यारो, अभी उनका कहाँ पैग़ाम आया ?
या रब, तुझी को ढूँढने घर से चले थे
हरसूँ किसी काफ़िर सनम का गाम आया
एहसान मानो, आह तक भरतें नहीं हम
इस कत्ल का तुमपर कहाँ इल्ज़ाम आया ?
तोडा कभी मंदिर, कभी मस्जिद गिराई
ना रोकने आया खुदा, ना राम आया
अंजाम-ए-मेहफ़िल साफ अब दिखने लगा है
कहने गज़ल फिर शायर-ए-नाकाम आया
कैसे मुकम्मल हो ’भँवर’ दीवान तेरा ?
आगाज़ से पहले तेरा अंजाम आया
5 टिप्पणियां:
तोडा कभी मंदिर, कभी मस्जिद गिराई
ना रोकने आया खुदा, ना राम आया
बहुत खूबसूरत नज़्म अगर ऊपर वाला रोक सकता तो आज बरेली जल नहीं रहा होता
behatareen.
किस किस शेर की तारीफ़ करूँ , सभी पसंद आये ...." सो ले ज़रा कफ़न की चादर , की अभी कहाँ उनका पैगाम आया "
मरकर ही सही दिल को ज़रा आराम आया ...उम्दा
आराम करने का अच्छा तरीका है....
लड्डू बोलता है... इंजीनियर के दिल से...
laddoospeaks.blogspot.com
तोडा कभी मंदिर, कभी मस्जिद गिराई
ना रोकने आया खुदा, ना राम आया
-बहुत उम्दा!! वाह!
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