इसे काट देना ही बेहतर रहेगा
यह रिश्तों का धागा उलझकर रहेगा
जवाँ हो गयी है मेरे दिल कि कष्टी
ग़मों का कहीं तो समंदर रहेगा
चली बदहवा, नींद शोलों की टूटी
घरोंदा हमारा झुलसकर रहेगा
सितारें जहाँ टूटकर गिर चुके हैं
उन्हीमें कहीं अपना रहबर रहेगा
बिगडता है अक्सर ज़रा बनते बनते
यह शायद हमारा मुकद्दर रहेगा
कभी जाम छलके, कभी अश्क छलके
जिसे मस्त जीना है, पीकर रहेगा
न सीनेमें तूफाँ दबाओ, 'भँवर', तुम
वह जीतेजी दिलको डुबोकर रहेगा
2 टिप्पणियां:
कभी जाम छलके, कभी अश्क छलके
जिसे मस्त जीना है, पीकर रहेगा
-बहुत खूब!
इसे काट देना ही बेहतर रहेगा
यह रिश्तों का धागा उलझकर रहेगा
bahut sunder.
एक टिप्पणी भेजें