नसीहत ख़िज्र की सुनती है दुनिया
मगर कुछ कान से बहरी है दुनिया
सभी ख्वाबों-खयालोंमें मगन है
न जाने किस तरह चलती है दुनिया
सुना करते थे बदलेगा ज़माना
(किताबोंमें यही लिखती है दुनिया)
गले से ज़िंदगी को मत लगाना
तुम्हें अय्याश कह सकती है दुनिया
इन्ही से तो पनपती है बगावत
सनम, ख्वाबोंसे ही डरती है दुनिया
हमें क्यों फिक्ऱ हो उस बेवफाकी ?
सँभालेगा वही जिसकी है दुनिया
'भँवर' तेरे लिए ही ठीक होगी
शरीफों पर कहाँ जचती है दुनिया ?
3 टिप्पणियां:
शोभना गज्जलिका
धन्यवाद:
हमें क्यों फिक्ऱ हो उस बेवफाकी ?
सँभालेगा वही जिसकी है दुनिया
-बहुत उम्दा!
इन्ही से तो पनपती है बगावत
सनम, ख्वाबोंसे ही डरती है दुनिया
बहुत ख़ूब !!
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