प्यारी है हमको किस लिए फुरकत न पूछो
बादेजुदाई वस्ल की लज़्ज़त न पूछो
पत्थर पिघलनेमें गुज़र जाती हैं सदियाँ
है बुतपरस्ती किस कदर आफत न पूछो
कुछ हुस्न उनका, कुछ जवानी का तकाज़ा
कैसे लगी दीदार की यह लत न पूछो
आशिक़मिजाज़ीने किया है नाम रोशन
कैसी शरीफोंसे मिली इज़्ज़त न पूछो
ठुमरी, गज़ल, मुजरें हज़ारों सुन चुके हैं
बेसाज़ लोरी की मगर रंगत न पूछो
1 टिप्पणी:
बहुत खूबसूरत गज़ल....
वर्ड वेरिफिकेशन टिप्पणियों से हटा लें....
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