शहर है यह या भरा बाज़ार है
बिक रहा है हर कोई, लाचार है
पत्थरोंके बीज बोए वक़्तने
अब जहाँ जाए नज़र, दीवार है
काम यह वैदो-हकीमों का नहीं
इस वतन की रूह तक बीमार है
ढाँपकर मुँह कर रहे ऐयाशियाँ
यूँ कहो के लोग इज़्ज़तदार है
हमकदम कैसे बने कोई तेरा
ज़िंदगी, कैसी तेरी रफ्तार है
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