हस्ती है हमारी किसी हुबाब की तरह
उसपर यह दिल्लगी तेरी अज़ाब की तरह
लगते हो हमें आप माहताब की तरह
जो रात ढले चल दिया जनाब की तरह
गर ज़ख़्म किये हुस्नने; गिना न कीजिये
होता है कभी प्यार भी हिसाब की तरह?
नारा-ए-मुहब्बत लगा लगा के थक गये
है प्यार भी दुशवार इनकलाब की तरह
इक उम्र हुई तुम मिले, मगर खुमार है
चढती है मुलाकात भी शराब की तरह
मत पूछ हमें मैकदा नसीब क्यों हुआ
वह प्यास बढाते रहे सराब की तरह
परदा नहीं है फिरभी है पर्दानशीं 'भँवर'
ओढे हुए है वह हँसी नकाब की तरह
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