अब आपके दिलसे हमें जाना नहीं
मालिक हैं, मेहमाँ की तरह रहना नहीं
बस एक ज़ेवर आपने पहना नहीं
शरमाइये, इस शर्मसा गहना नहीं
माना, नहीं है शर्मसा गहना मगर
क्या उम्रभर दीवार यह ढहना नहीं ?
जल-जल शबिस्ताँ के दिये बुझने लगे
फिर भी मुकम्मल आपका सजना नहीं
जैसा भी है, हर शेर अपना है, 'भँवर'
नक़्ल-ए-असद, या मीरसा कहना नहीं
मालिक हैं, मेहमाँ की तरह रहना नहीं
बस एक ज़ेवर आपने पहना नहीं
शरमाइये, इस शर्मसा गहना नहीं
माना, नहीं है शर्मसा गहना मगर
क्या उम्रभर दीवार यह ढहना नहीं ?
जल-जल शबिस्ताँ के दिये बुझने लगे
फिर भी मुकम्मल आपका सजना नहीं
जैसा भी है, हर शेर अपना है, 'भँवर'
नक़्ल-ए-असद, या मीरसा कहना नहीं
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