झाँकते हैं लोग पाकर खिडकियाँ
काश, आँखोंमें न होती पुतलियाँ
मैं करूँ अफ़सोस किस किस बात का
दो घडी की ज़िंदगी के दरमियाँ
और क्या है दासतान-ए-इश्क़में
दूरियाँ, मजबूरियाँ, नाकामियाँ
आसमाँ के ख्व्वाब देखे थे कभी
दे रही दो गज़ ज़मीं अब लोरियाँ
कुछ शहद है शायरीमें ख्व्वाबका
कुछ अधूरी चाहतों की तलखियाँ
काश, आँखोंमें न होती पुतलियाँ
मैं करूँ अफ़सोस किस किस बात का
दो घडी की ज़िंदगी के दरमियाँ
और क्या है दासतान-ए-इश्क़में
दूरियाँ, मजबूरियाँ, नाकामियाँ
आसमाँ के ख्व्वाब देखे थे कभी
दे रही दो गज़ ज़मीं अब लोरियाँ
कुछ शहद है शायरीमें ख्व्वाबका
कुछ अधूरी चाहतों की तलखियाँ
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