लब्ज़ों के पैंतरोंसे आगे बढा न कोई
अक्स-ए-खयाल-ए-शायर गर-चे दिखा न कोई
मुझको मिली न होगी ऐसी सजा न कोई
मेरे गुनाह क्या हैं, समझा सका न कोई
बदनाम मेहफिलोंने दामन छुडा लिया है
बज़्म-ए-शरीफ का भी देता पता न कोई
कितने अजीब हैं यह दुनिया के रास्ते भी
गुजरे हैं सब यहाँसे लेकीन बसा न कोई
चौपाल भी वहीं है, बाज़ार भी वहीं है
साहिब, खरी सुनाने कबिरा खडा न कोई
किस्सा-ए-ज़िंदगानी अक्सर रहे अधूरा
होता है खत्म कैसे यह जानता न कोई
अक्स-ए-खयाल-ए-शायर गर-चे दिखा न कोई
मुझको मिली न होगी ऐसी सजा न कोई
मेरे गुनाह क्या हैं, समझा सका न कोई
बदनाम मेहफिलोंने दामन छुडा लिया है
बज़्म-ए-शरीफ का भी देता पता न कोई
कितने अजीब हैं यह दुनिया के रास्ते भी
गुजरे हैं सब यहाँसे लेकीन बसा न कोई
चौपाल भी वहीं है, बाज़ार भी वहीं है
साहिब, खरी सुनाने कबिरा खडा न कोई
किस्सा-ए-ज़िंदगानी अक्सर रहे अधूरा
होता है खत्म कैसे यह जानता न कोई
1 टिप्पणी:
कितने अजीब हैं यह दुनिया के रास्ते भी
गुजरे हैं सब यहाँसे लेकीन बसा न कोई
Simple Superb.
Neeraj
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