आज मेहफिलमें नहीं नाम-ओ-निशाँ परवाने का
यह न हो आलम कहीं खुद शम्म्अ के जल जाने का
हुस्न को भगवानने क्या खूब दे रख्खी जुबाँ
अर्ज भी करते हैं तो अंदाज़ है फरमाने का
और कितनी देर उठ-उठकर कयामत ढायेंगी ?
कब हुनर सीखेगी पलकें मूँदने-शरमाने का ?
हर नये दिन का अगर आग़ाज़ हो दीदारसे
ग़म किसे महसूस होगा चाँद के ढल जाने का ?
हाँ, हमें भी वक्त-ए-पीरी याद आना है खुदा
आज तो दिलपर है हावी संग इक बुतखानेका
दैर की इस भीडमें दुखसुखकी बातें क्या करें ?
देव, फुरसतमें किसी दिन रुख करो मैखाने का
दीन, दुनिया, दिल के मसले आप क्या कम थे, 'भँवर'
ज़िंदगीभर आदमी मोहताज क्यों है दाने का ?
यह न हो आलम कहीं खुद शम्म्अ के जल जाने का
हुस्न को भगवानने क्या खूब दे रख्खी जुबाँ
अर्ज भी करते हैं तो अंदाज़ है फरमाने का
और कितनी देर उठ-उठकर कयामत ढायेंगी ?
कब हुनर सीखेगी पलकें मूँदने-शरमाने का ?
हर नये दिन का अगर आग़ाज़ हो दीदारसे
ग़म किसे महसूस होगा चाँद के ढल जाने का ?
हाँ, हमें भी वक्त-ए-पीरी याद आना है खुदा
आज तो दिलपर है हावी संग इक बुतखानेका
दैर की इस भीडमें दुखसुखकी बातें क्या करें ?
देव, फुरसतमें किसी दिन रुख करो मैखाने का
दीन, दुनिया, दिल के मसले आप क्या कम थे, 'भँवर'
ज़िंदगीभर आदमी मोहताज क्यों है दाने का ?
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