दिल टूटने का, यारों, क्या ग़म हुआ न होगा?
निकला अगर जनाज़ा, मातम हुआ न होगा?
हम से बिछड चले तब आयी बहार उनपर
आँसू यूँ ही हमारा शबनम हुआ न होगा
तुमसे गिला नहीं है, पत्थर उठानेवालों
तुम पर कभी जुनूँ का आलम हुआ न होगा
ज़ख़्म-ए-जिगर हमारा नासूर बन गया है
इस बार जाम से भी मरहम हुआ न होगा
कैसे पडे न सूखा गंगा नदी का पानी?
दुनिया के पाप धोते क्या कम हुआ न होगा?
निकला अगर जनाज़ा, मातम हुआ न होगा?
हम से बिछड चले तब आयी बहार उनपर
आँसू यूँ ही हमारा शबनम हुआ न होगा
तुमसे गिला नहीं है, पत्थर उठानेवालों
तुम पर कभी जुनूँ का आलम हुआ न होगा
ज़ख़्म-ए-जिगर हमारा नासूर बन गया है
इस बार जाम से भी मरहम हुआ न होगा
कैसे पडे न सूखा गंगा नदी का पानी?
दुनिया के पाप धोते क्या कम हुआ न होगा?
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