वस्ल का हर ख़्वाब बर आता नहीं
लौट कर गर मुंतज़र आता नहीं
रूठने में आप माहिर हैं मगर
मान जाने का हुनर आता नहीं
ज़ुल्फ़ के साये में दम ले लूँ ज़रा
राह में आगे शजर आता नहीं
सोचता हूँ दिल लगा लूँ आपसे
और तो कोई नज़र आता नहीं
कम से कम मुस्कान ही दे दो हमें
मुफ़्त में लाल-ओ-गुहर आता नहीं
पंखड़ी से होंट, उस पर फिर शहद
फूल पर यूँ ही 'भँवर' आता नहीं
लौट कर गर मुंतज़र आता नहीं
रूठने में आप माहिर हैं मगर
मान जाने का हुनर आता नहीं
ज़ुल्फ़ के साये में दम ले लूँ ज़रा
राह में आगे शजर आता नहीं
सोचता हूँ दिल लगा लूँ आपसे
और तो कोई नज़र आता नहीं
कम से कम मुस्कान ही दे दो हमें
मुफ़्त में लाल-ओ-गुहर आता नहीं
पंखड़ी से होंट, उस पर फिर शहद
फूल पर यूँ ही 'भँवर' आता नहीं
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