जवाँ आशिकोंके दिलोंसा नगर है
सुकूँ है कहीं तो कहीं पर गदर है
कहाँ जा रहा हूँ, कहाँ तक सफर है ?
कहीं पर है मंज़िल, कहीं रहगुजर है
यहाँ आ गया जो, न फिर लौट पाया
बडा बेरहम यह तिलिस्मी नगर है
किसी रोज साकी करेगा इनायत
अभी जाम खाली हमारी नज़र है
जिये जा रहें सब, पिये जा रहें सब
नशा मुफ्लिसीका चढा सर-ब-सर है
न जन्नत मिली ना मिली हूर कोई
करूँ क्या, अभी वाइज़ोंपर गुजर है
न झुककर कभी पाँव छूना हमारें
हमारी दुआ तो बडी बेअसर है
अभी मस्त है वह जुए की फ़तहमें
कुरुक्षेत्र की ओर अपनी नज़र है
लगे ना कभी लत शराबेसुखन की
नशा मैकशी का पहर, दो पहर है
खयालात उमदा, न कोई हुनर है
बडे बेतुके शेर कहता 'भँवर' है
1 टिप्पणी:
bahut khoob , badhaai.
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