खबर थी कि अपनी अलग राह चुनते
कदम दो कदम तो मगर साथ चलते
नज़र ना चुराओ, तुम्हारी निगाहें
बदल जातीं है इक पलक के झपकते
अभी दाग दामनपर आया नहीं है
चुनरिया रही सर सरकते सरकते
बडी सख्त है जान हम पापियोंकी
गुजरती है सदियाँ निकलते निकलते
तुम्हारे महल हो; हमारी हैं गलियाँ
मिलोगे न कैसे यहाँ से गुजरते ?
कभी तो नज़र आइनेसे हटाओ
जवानी न बीते निखरते, सँवरते
जहाँ सिर्फ़ पतझड की आहट है बाकी
सुना था कभी पंछियों को चहकते
सभीने 'भँवर'से किया है किनारा
हमीं रह गये साहिलों को तरसते
1 टिप्पणी:
कभी तो नज़र आइनेसे हटाओ
जवानी न बीते निखरते, सँवरते
wah wah , sabhi ek se badh kar ek.
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