उजाले आप की आँखोंके गर मिलते निशानीमें
जला लेते दिये यादों के हम ग़म की सियाहीमें
कभी "उफ" तक, सनम, करते नहीं हम बेकरारीमें
रियायत आप गर करते कभी वादाखिलाफ़ीमें
अभी तक डर रहा हूँ, नींद फिर आए न आँखोंमें
किसीसे आशना हूँ, ख्वाब देखा था जवानीमें
कहा जब संग उनको, पत्थरोंने भी शिकायत की
"कभी पत्थर हुए शामिल किसी की जगहसाईमें ?"
ग़मे-हस्ती ग़मे-नाकाम हसरत से जुदा क्या है ?
तमन्नाएँ सभी किसकी हुई पूरी खुदाईमें ?
ज़मानेभर की रुसवाई चली आई है मिलनेको
'भँवर', रह जाए ना कोई कसर मेहमाँनवाज़ीमें
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