अगर दे दो इजाज़त, आपकी ज़ुल्फोंसे खेलेंगे
कभी जूडेसे खेलेंगे, कभी पेचोंसे खेलेंगे
किसी सूरत हमारा नाम आए आप के लब पर
कमस्कम इस तरह हम आप के होटोंसे खेलेंगे
गवाही दे रहा है चाक दामन बेकरारीका
जिन्हे है शौक फूलोंका वहीं काँटोंसे खेलेंगे
सभी किस्मत की बातें हैं, अगर हारे, न रोयेंगे
मुकद्दरने जो बाटें हैं, उन्ही पत्तोंसे खेलेंगे
सुखनवर कह गये हैं इश्क़ है इक आग का दरिया
अजी क्या डूबना, हम उम्रभर मौजोंसे खेलेंगे
शनिवार, सितंबर 25, 2010
शुक्रवार, सितंबर 24, 2010
फर्ज़
कितनी आसानीसे जाँ से दिल जुदा किया
आज हमने हँसके बेटी को बिदा किया
जब तलक वह थी यहाँ, घर दैरसा लगा
वह गई, पाकीज़गीने अल्विदा किया
देवता की देन थी, फिरभी न रख सके
फर्ज़ हमने बाप होने का अदा किया
ऐ नमी, तू आँखमें बेवक़्त आ गई
अपने घर वह जा रही थी, ग़मज़दा किया
जा; 'भँवर' से दूर इक साहिल तुझे मिले
अब किसी अपने को तूने नाखुदा किया...
आज हमने हँसके बेटी को बिदा किया
जब तलक वह थी यहाँ, घर दैरसा लगा
वह गई, पाकीज़गीने अल्विदा किया
देवता की देन थी, फिरभी न रख सके
फर्ज़ हमने बाप होने का अदा किया
ऐ नमी, तू आँखमें बेवक़्त आ गई
अपने घर वह जा रही थी, ग़मज़दा किया
जा; 'भँवर' से दूर इक साहिल तुझे मिले
अब किसी अपने को तूने नाखुदा किया...
गुरुवार, सितंबर 09, 2010
माना इनायतोंके काबिल तो हम नहीं
माना इनायतोंके काबिल तो हम नहीं
कैसी यह बेरुखी के ज़ुल्मोसितम नहीं ?
मुखडा हथेलियोंमें तुमने छुपा लिया
हाँ, ऊँगलियाँ हैं फैली, यह भी तो कम नहीं
मंज़िल मिले तो कैसे मुझ नामुराद को?
या रहगुजर नहीं या फिर हमकदम नहीं
आदत हुई है इतनी दुख-दर्द की मुझे
कैसे बिताऊँ उसको जो शामेग़म नहीं ?
ठहरो, कहार, थोडा सज लूँ, सँवार लूँ
दुनिया कहे जनाज़ा डोली से कम नहीं
कैसी यह बेरुखी के ज़ुल्मोसितम नहीं ?
मुखडा हथेलियोंमें तुमने छुपा लिया
हाँ, ऊँगलियाँ हैं फैली, यह भी तो कम नहीं
मंज़िल मिले तो कैसे मुझ नामुराद को?
या रहगुजर नहीं या फिर हमकदम नहीं
आदत हुई है इतनी दुख-दर्द की मुझे
कैसे बिताऊँ उसको जो शामेग़म नहीं ?
ठहरो, कहार, थोडा सज लूँ, सँवार लूँ
दुनिया कहे जनाज़ा डोली से कम नहीं
सदस्यता लें
संदेश (Atom)