अभी कुछ और है लड़ना ज़मानेसे
कभी का रूठता वरना ज़मानेसे
नहीं मंजूर गर कटना ज़मानेसे
तो है लाज़िम सुलह करना ज़मानेसे
लड़ाई एकतर्फा, जीत मुष्किल है
अभी इन्सान है अदना ज़मानेसे
ज़माना था कहाँ, पहुँचा कहाँ देखो
रहे मुफ्लिस वहीं, कहना ज़मानेसे
कई भूखें, कई नंगें, कई बेघर
अभी कितनों को हैं हटना ज़मानेसे
छुपा रख्खे हैं हमने ख्वाब सीनेमें
सहा जाता नहीं सपना ज़मानेसे
छुपाओ लाख मीना और साग़र को
छुपे ना, हाय, लड़खड़ना ज़मानेसे
हमीमें रह गई होगी कमी कोई
शिकायत क्या युँहीं करना ज़मानेसे
’भँवर’ने नाव को कुछ इस तरह मोडा
अलग होकर पड़ा बहना ज़मानेसे
1 टिप्पणी:
हमीमें रह गई होगी कमी कोई
शिकायत क्या युँहीं करना ज़मानेसे
sahi kaha aapne achha sher badhai
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