ग़म नहीं होता अगर, आँसू नहीं आते
बेवजह दो दो पहर आँसू नहीं आते
याद आती है मगर आँसू नहीं आते
दिलपर वह टूटा कहर, आँसू नहीं आते
पत्थरोंसे क्या मुझे उसने तराशा है ?
आदमी होता अगर, आँसू नहीं आते ?
आज तक भूला नहीं हूँ मैं उसे लेकिन
आज कल शामो-सहर आँसू नहीं आते
आदतन आँचल को आँखोंसे लगाती है
वरना अब वक़्त्-ए-सफर आँसू नहीं आते
खूब रोया फूल जब बेवक़्त मुरझाये
जो गिरे सूखे शजर आँसू नहीं आते
संगदिल खुदको बनाया राहत-ए-ग़म को
अब गिला इसका नकर, आँसू नहीं आते
बेवजह दो दो पहर आँसू नहीं आते
याद आती है मगर आँसू नहीं आते
दिलपर वह टूटा कहर, आँसू नहीं आते
पत्थरोंसे क्या मुझे उसने तराशा है ?
आदमी होता अगर, आँसू नहीं आते ?
आज तक भूला नहीं हूँ मैं उसे लेकिन
आज कल शामो-सहर आँसू नहीं आते
आदतन आँचल को आँखोंसे लगाती है
वरना अब वक़्त्-ए-सफर आँसू नहीं आते
खूब रोया फूल जब बेवक़्त मुरझाये
जो गिरे सूखे शजर आँसू नहीं आते
संगदिल खुदको बनाया राहत-ए-ग़म को
अब गिला इसका नकर, आँसू नहीं आते
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