दिल-ए-नाशाद को बेताब-ओ-बेकरार हुए
हो गया एक ज़माना विसाल-ए-यार हुए
गुंचा-ए-दिल कि तरफ देख, सूखने न लगे
एक अरसा हुआ आँखों को अश्कबार हुए
वह कहीं झीनत-ए-दीवार कर न ले सर को
कू-ए-जानामें थे आशिक कईं शिकार हुए
दोस्त कुछ खास मिले हैं उन्हें ज़रूर वहाँ
लौट आये न कभी जो नदी के पार हुए
वह न पुरसिश को चले आए बेनकाब, 'भँवर'
अभी दो दिन न हुए तीर आरपार हुए
हो गया एक ज़माना विसाल-ए-यार हुए
गुंचा-ए-दिल कि तरफ देख, सूखने न लगे
एक अरसा हुआ आँखों को अश्कबार हुए
वह कहीं झीनत-ए-दीवार कर न ले सर को
कू-ए-जानामें थे आशिक कईं शिकार हुए
दोस्त कुछ खास मिले हैं उन्हें ज़रूर वहाँ
लौट आये न कभी जो नदी के पार हुए
वह न पुरसिश को चले आए बेनकाब, 'भँवर'
अभी दो दिन न हुए तीर आरपार हुए
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