बहुत सी आधी-अधुरी कविताएँ दफ़न हैं
मेरी कापी के वीरान पन्नोंमें.
वे कविताएँ जो मूलत: अक्षम थी
पूर्णत्व तक पहुँचनेमें;
जिनका जीव था केवल
कुछ शब्दों का, चंद पंक्तियों का.
वे कविताएँ जो स्वयं नहीं उभरी
मन की गहराईयोंमें छिपे
बीते, अधभूले अनुभवों से;
जिनमें कुछ ना था
सिवा कारीगरी के.
वे कविताएँ जिनमें
ना मेरा प्रतिबिंब था,
ना समाज का,
ना हमारे सनातन असमंजस का.
वे कविताएँ जो परे थी
मेरी भाषा की मर्यादाओं से;
जिनके गर्भ का ओज
मेरी क्षीण प्रतिभा सह ना सकी.
उनकी मृत्यु का मुझे दुख नहीं.
मैं सोग मनाता हूँ उनका
जो समय से आगे चलकर,
सभ्यता के मान्य संकेतों को तोडकर
खोजना चाहती थी नये मार्ग
सत्य की ओर जानेवाले.
मैंने अपनेही हाथों से
उनकी भ्रूणहत्या कर दी.
हर कोई सॉक्रॅटिस नहीं हो सकता...
मेरी कापी के वीरान पन्नोंमें.
वे कविताएँ जो मूलत: अक्षम थी
पूर्णत्व तक पहुँचनेमें;
जिनका जीव था केवल
कुछ शब्दों का, चंद पंक्तियों का.
वे कविताएँ जो स्वयं नहीं उभरी
मन की गहराईयोंमें छिपे
बीते, अधभूले अनुभवों से;
जिनमें कुछ ना था
सिवा कारीगरी के.
वे कविताएँ जिनमें
ना मेरा प्रतिबिंब था,
ना समाज का,
ना हमारे सनातन असमंजस का.
वे कविताएँ जो परे थी
मेरी भाषा की मर्यादाओं से;
जिनके गर्भ का ओज
मेरी क्षीण प्रतिभा सह ना सकी.
उनकी मृत्यु का मुझे दुख नहीं.
मैं सोग मनाता हूँ उनका
जो समय से आगे चलकर,
सभ्यता के मान्य संकेतों को तोडकर
खोजना चाहती थी नये मार्ग
सत्य की ओर जानेवाले.
मैंने अपनेही हाथों से
उनकी भ्रूणहत्या कर दी.
हर कोई सॉक्रॅटिस नहीं हो सकता...
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