कितनी हैं बोझल साँसें
हैं गर्दे-मकतल साँसें
क्या सोचूँ मैं बरसों का
जब हैं पल दो पल साँसें
कैसी नाजुक है डोरी
ढाके की मलमल साँसें
रुकने तक चलना लाज़िम
कैसी हैं बेकल साँसें
हम सब हैं नन्हे बच्चें
हैं माँ का आंचल साँसें
हैं गर्दे-मकतल साँसें
क्या सोचूँ मैं बरसों का
जब हैं पल दो पल साँसें
कैसी नाजुक है डोरी
ढाके की मलमल साँसें
रुकने तक चलना लाज़िम
कैसी हैं बेकल साँसें
हम सब हैं नन्हे बच्चें
हैं माँ का आंचल साँसें
1 टिप्पणी:
कैसी नाजुक है डोरी
ढाके की मलमल साँसें
वाह...वाह...वाह...बेजोड़.
नीरज
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