ख़्व्वाब, चैन, नींदें, सब कुछ मसल गए
आरिज़ों से होकर आँसू निकल गए
आप को समाँ का जब तक पता चला
थक गयी बहारें, मौसम बदल गए
दास्ताँ सुनायी तो हाल यह हुआ
सच गले न उतरा, पर झूठ चल गए
आँधियों ने पूछा होगा मेरा पता
देख, नाखुदाके तेवर बदल गए
क्या तुम्हे ज़रूरत थी पाँव की, 'भँवर' ?
आ सके न चलकर, काँधों के बल गए
आरिज़ों से होकर आँसू निकल गए
आप को समाँ का जब तक पता चला
थक गयी बहारें, मौसम बदल गए
दास्ताँ सुनायी तो हाल यह हुआ
सच गले न उतरा, पर झूठ चल गए
आँधियों ने पूछा होगा मेरा पता
देख, नाखुदाके तेवर बदल गए
क्या तुम्हे ज़रूरत थी पाँव की, 'भँवर' ?
आ सके न चलकर, काँधों के बल गए
1 टिप्पणी:
waah...
दास्ताँ सुनायी तो हाल यह हुआ
सच गले न उतरा, पर झूठ चल गए
excellent.......
anu
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