इश्क़ जलता है तभी मशहूर होती है
शम्म परवाने बिना बेनूर होती है
सामना उनकी नज़र का क्या करें कोई?
काँच तक देखे से उनके चूर होती है
दिल किसी पर आये तो इज़हार ना करना
वह सितमगर और भी मगरूर होती है
यह कहाँ का इश्क़ है, कैसा विसाल-ए-यार?
वह करीब आती है तब भी दूर होती है
खोजने से देव मिलते हैं, चलो माना
हर परीचेहरा, ’भँवर’, क्या हूर होती है?
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