दर्दे-दिल फ़िर बढ रहा है, जामे-उल्फ़त दे मुझे
प्यास दो दिन की नही यह, ताकयामत दे मुझे
कौन कहता है दवा इस मर्ज़ की कोई नही
इक झलक मुखडा दिखा जा और राहत दे मुझे
सुर्ख होटों की सुराही मैकशों की जुस्तजू
सिर्फ़ दो बुंदें चुरा लूँ गर इजाज़त दे मुझे
जाम भी है और साकी भी नज़र के सामने
मैकदे तक जा न पाऊँ यह सज़ा मत दे मुझे
या जलाकर शम्म उल्फ़त की मुझे पुरनूर कर
या शिकस्ता-इश्क़-मजनू की शहादत दे मुझे
यूँ परायीसी नज़रसे देखना अच्छा नही
या निगाहोंमें मुहब्बत या अदावत दे मुझे
छेड ले जी-भर मुझे तू पर ज़रा यह सोच ले
रब किसी दिन भूलकर तुझसी न फ़ितरत दे मुझे
छेड ले जी-भर मुझे तू पर ज़रा यह सोच ले
देख तेरी दिल्लगीको कौन इज़्ज़त दे मुझे ?
कुलमिलाकर प्यार की दो-चार घडियाँही मिली
वस्ल की शबभी सबरकी ना हिदायत दे मुझे
मैं नज़रसे पी रहा हूँ शोखियाँ जब हुस्नकी
एक कतराभी न छलके यह निआमत दे मुझे
बुतपरस्ती की बुराई खूब तू कर ले मगर
देख ले वाइज़ उसे तू, फ़िर नसीहत दे मुझे
प्यास दो दिन की नही यह, ताकयामत दे मुझे
कौन कहता है दवा इस मर्ज़ की कोई नही
इक झलक मुखडा दिखा जा और राहत दे मुझे
सुर्ख होटों की सुराही मैकशों की जुस्तजू
सिर्फ़ दो बुंदें चुरा लूँ गर इजाज़त दे मुझे
जाम भी है और साकी भी नज़र के सामने
मैकदे तक जा न पाऊँ यह सज़ा मत दे मुझे
या जलाकर शम्म उल्फ़त की मुझे पुरनूर कर
या शिकस्ता-इश्क़-मजनू की शहादत दे मुझे
यूँ परायीसी नज़रसे देखना अच्छा नही
या निगाहोंमें मुहब्बत या अदावत दे मुझे
छेड ले जी-भर मुझे तू पर ज़रा यह सोच ले
रब किसी दिन भूलकर तुझसी न फ़ितरत दे मुझे
छेड ले जी-भर मुझे तू पर ज़रा यह सोच ले
देख तेरी दिल्लगीको कौन इज़्ज़त दे मुझे ?
कुलमिलाकर प्यार की दो-चार घडियाँही मिली
वस्ल की शबभी सबरकी ना हिदायत दे मुझे
मैं नज़रसे पी रहा हूँ शोखियाँ जब हुस्नकी
एक कतराभी न छलके यह निआमत दे मुझे
बुतपरस्ती की बुराई खूब तू कर ले मगर
देख ले वाइज़ उसे तू, फ़िर नसीहत दे मुझे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें