हम मैकदे से हर दम प्यासे निकल गये
साकी की लाज रखने झूमे, फिसल गये
उजली न एक पल भी दिल की उदासियाँ
रुखसार के उजाले नाकाम ढल गये
अब क्या बताएँ उनको क्यों आँख नम नहीं
थोडे छुपाएँ आँसू , थोडे निगल गये
नज़रें झुकी हुई हैं, तेवर भी नर्म हैं
आँखें दिखानेवाले कैसे बदल गये
ठंडी भरो न आहें, साँसों में आँच हो
कितने ही बर्फ के बुत छूते पिघल गये
आये तो थे मिटाने वह रौनक-ए-चमन
कुछ फूल खिल रहें थे, सो भी मसल गये
एहसानमंद हैं हम संग-ओ-रकीब के
घायल हुए तभी तो कहकर गज़ल गये...
3 टिप्पणियां:
wah jee! kya baat hai, behad achchha likha hai
अब क्या बताएँ उनको क्यों आँख नम नहीं
थोडे छुपाएँ आँसू , थोडे निगल गये
भाई वाह...क्या बात है बेहतरीन ग़ज़ल...आनंद आ गया...लिखते रहें...
नीरज
hum to apke kalam ke diwane ho gaye...
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