रविवार, अगस्त 23, 2009

क्या बताऊँ किस तरह यह ज़िंदगी जाती रही

क्या बताऊँ किस तरह यह ज़िंदगी जाती रही
हर सुबह के बाद अक्सर शामेगम आती रही

खेलकर दिलसे हमारे दिल वह बहलाती रही
जब भरा दिल, तोडकर दिल, दोस्त कहलाती रही

"धूप है तेरा मुकद्दर, प्यार शबनमसे न कर"
गुल न माना बात, बगिया लाख़ समझाती रही’


 यूँ किसीने लत लगाई दर्द दे-देकर हमें
ग़मज़दोंको लज़्ज़तेगम उम्रभर भाती रही

वस्ल की बातें न पूछो, वह कहीं शरमा न दें
सिर्फ़ इतना कह सकूँगा, रात मदमाती रही

मैं ज़ुबाँपर नामेका़तिल ला नहीं सकता मगर
जानता हूँ चिल्मनों को कौन सरकाती रही

इश्क़्में खानाखराबी इस कदर दिल की हुई
दिलबरों के वासते अब सिर्फ़ बरसाती रही


था कभी जामेसुख़न तेरी सुराहीमें ’भँवर’
मैकशी का दौर था जब तक कलम गाती रही

बुधवार, अगस्त 19, 2009

चूमना चाहा तुम्हें, ज़ुल्म यह संगीन है

चूमना चाहा तुम्हें, ज़ुल्म यह संगीन है
चूमनेसे गर रहा, हुस्न की तौहीन है


नेकनामी का चलन क्यों सिखाया, वाइज़ों ?
दागदारों की यहाँ ज़िंदगी रंगीन है


लो, मुकम्मल हो गयी कत्ल़ की तैयारियाँ
है भरोसा, प्यार है; साँप है, आस्तीन है


अल्विदा, ऐ रहबरों; शुक्रिया, ऐ रहगुज़र
मंज़िलों का ग़म नहीं, दौर की तस्कीन है


फूलसे अल्फ़ाज़से जब शहद लेगा ’भँवर’
सुर्ख़ होटों पर सजे, तब गज़ल शीरीन है

बुधवार, अगस्त 05, 2009

आज फ़िर गुज़री जवानी याद आई

आज फ़िर गुज़री जवानी याद आई
फ़िर मुहब्बत की, जिगर पर चोट खाई


फ़िर हवाओं को चुनौती दे रही है
फ़िर दिलोंमें प्यार की लौ टिमटिमाई


इश्कमें दिल हारने पर रो रहे हो
जब कफन बाँधें खडी सारी खुदाई


बारहा दिलने किया आगा़ह हमको
हम युँहीं देते रहे दिल को दुहाई


काश, अपने दिल के अंदर झाँक लेते
बेसबब होती नहीं है बेवफाई


जाम, साकी, इश्क़ के देखो परे भी
तब समझ खय्यामकी आये रुबाई


यह कभी पसली हमारें जिस्म  की थी
क्या गज़ब की चीज़ हव्वा है बनाई


क्या शिकायत खा़क होने की करें हम?
इश्क़ की यह आग हमने खुद लगाई


हर्फ़ तक आता नहीं अपना वजनसे
फलसफे की बात यह किसने चलाई?