हम मैकदे से हर दम प्यासे निकल गये
साकी की लाज रखने झूमे, फिसल गये
उजली न एक पल भी दिल की उदासियाँ
रुखसार के उजाले नाकाम ढल गये
अब क्या बताएँ उनको क्यों आँख नम नहीं
थोडे छुपाएँ आँसू , थोडे निगल गये
नज़रें झुकी हुई हैं, तेवर भी नर्म हैं
आँखें दिखानेवाले कैसे बदल गये
ठंडी भरो न आहें, साँसों में आँच हो
कितने ही बर्फ के बुत छूते पिघल गये
आये तो थे मिटाने वह रौनक-ए-चमन
कुछ फूल खिल रहें थे, सो भी मसल गये
एहसानमंद हैं हम संग-ओ-रकीब के
घायल हुए तभी तो कहकर गज़ल गये...
शनिवार, जुलाई 31, 2010
रविवार, जुलाई 18, 2010
हाल-ए-दिल जब जब ज़ुबाँ पर आ गया
हाल-ए-दिल जब जब ज़ुबाँ पर आ गया
बोज़ भारी नातवाँ पर आ गया
बस गया है, हो, न हो उसकी रज़ा
खुल्द से आदम जहाँपर आ गया
इश्क़ परदे को हुआ है हुस्न से
वक़्त कैसा पासबाँ पर आ गया
चाँदनीसी वह ज़हन पर छा गयी
नूर जैसे कहकशाँ पर आ गया
आँख गीली आतिश-ए-दिल कह गयी
लाख रोका था धुआँ, पर आ गया
ना कली है, ना बहारों का समाँ
क्यों, 'भँवर', तू गुलसिताँ पर आ गया ?
बोज़ भारी नातवाँ पर आ गया
बस गया है, हो, न हो उसकी रज़ा
खुल्द से आदम जहाँपर आ गया
इश्क़ परदे को हुआ है हुस्न से
वक़्त कैसा पासबाँ पर आ गया
चाँदनीसी वह ज़हन पर छा गयी
नूर जैसे कहकशाँ पर आ गया
आँख गीली आतिश-ए-दिल कह गयी
लाख रोका था धुआँ, पर आ गया
ना कली है, ना बहारों का समाँ
क्यों, 'भँवर', तू गुलसिताँ पर आ गया ?
मंगलवार, जुलाई 13, 2010
उजाले आप की आँखोंके कुछ मिलते निशानीमें
उजाले आप की आँखोंके गर मिलते निशानीमें
जला लेते दिये यादों के हम ग़म की सियाहीमें
कभी "उफ" तक, सनम, करते नहीं हम बेकरारीमें
रियायत आप गर करते कभी वादाखिलाफ़ीमें
अभी तक डर रहा हूँ, नींद फिर आए न आँखोंमें
किसीसे आशना हूँ, ख्वाब देखा था जवानीमें
कहा जब संग उनको, पत्थरोंने भी शिकायत की
"कभी पत्थर हुए शामिल किसी की जगहसाईमें ?"
ग़मे-हस्ती ग़मे-नाकाम हसरत से जुदा क्या है ?
तमन्नाएँ सभी किसकी हुई पूरी खुदाईमें ?
ज़मानेभर की रुसवाई चली आई है मिलनेको
'भँवर', रह जाए ना कोई कसर मेहमाँनवाज़ीमें
जला लेते दिये यादों के हम ग़म की सियाहीमें
कभी "उफ" तक, सनम, करते नहीं हम बेकरारीमें
रियायत आप गर करते कभी वादाखिलाफ़ीमें
अभी तक डर रहा हूँ, नींद फिर आए न आँखोंमें
किसीसे आशना हूँ, ख्वाब देखा था जवानीमें
कहा जब संग उनको, पत्थरोंने भी शिकायत की
"कभी पत्थर हुए शामिल किसी की जगहसाईमें ?"
ग़मे-हस्ती ग़मे-नाकाम हसरत से जुदा क्या है ?
तमन्नाएँ सभी किसकी हुई पूरी खुदाईमें ?
ज़मानेभर की रुसवाई चली आई है मिलनेको
'भँवर', रह जाए ना कोई कसर मेहमाँनवाज़ीमें
शुक्रवार, जुलाई 02, 2010
प्यारी है हमको किस लिए फुरकत न पूछो
प्यारी है हमको किस लिए फुरकत न पूछो
बादेजुदाई वस्ल की लज़्ज़त न पूछो
पत्थर पिघलनेमें गुज़र जाती हैं सदियाँ
है बुतपरस्ती किस कदर आफत न पूछो
कुछ हुस्न उनका, कुछ जवानी का तकाज़ा
कैसे लगी दीदार की यह लत न पूछो
आशिक़मिजाज़ीने किया है नाम रोशन
कैसी शरीफोंसे मिली इज़्ज़त न पूछो
ठुमरी, गज़ल, मुजरें हज़ारों सुन चुके हैं
बेसाज़ लोरी की मगर रंगत न पूछो
बादेजुदाई वस्ल की लज़्ज़त न पूछो
पत्थर पिघलनेमें गुज़र जाती हैं सदियाँ
है बुतपरस्ती किस कदर आफत न पूछो
कुछ हुस्न उनका, कुछ जवानी का तकाज़ा
कैसे लगी दीदार की यह लत न पूछो
आशिक़मिजाज़ीने किया है नाम रोशन
कैसी शरीफोंसे मिली इज़्ज़त न पूछो
ठुमरी, गज़ल, मुजरें हज़ारों सुन चुके हैं
बेसाज़ लोरी की मगर रंगत न पूछो
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