बुधवार, मार्च 21, 2012

ख़्व्वाब, चैन, नींदें, सब कुछ मसल गए

ख़्व्वाब, चैन, नींदें, सब कुछ मसल गए
आरिज़ों से होकर आँसू निकल गए

आप को समाँ का जब तक पता चला
थक गयी बहारें, मौसम बदल गए

दास्ताँ सुनायी तो हाल यह हुआ
सच गले न उतरा, पर झूठ चल गए

आँधियों ने पूछा होगा मेरा पता
देख, नाखुदाके तेवर बदल गए

क्या तुम्हे ज़रूरत थी पाँव की, 'भँवर' ?
आ सके न चलकर, काँधों के बल गए

बुधवार, मार्च 07, 2012

वस्ल का हर ख़्वाब बर आता नहीं

वस्ल का हर ख़्वाब बर आता नहीं
लौट कर गर मुंतज़र आता नहीं

रूठने में आप माहिर हैं मगर
मान जाने का हुनर आता नहीं

ज़ुल्फ़ के साये में दम ले लूँ ज़रा
राह में आगे शजर आता नहीं

सोचता हूँ दिल लगा लूँ आपसे
और तो कोई नज़र आता नहीं

कम से कम मुस्कान ही दे दो हमें
मुफ़्त में लाल-ओ-गुहर आता नहीं

पंखड़ी से होंट, उस पर फिर शहद
फूल पर यूँ ही 'भँवर' आता नहीं 

गुरुवार, मार्च 01, 2012

ज़िंदगी का रुख बदल जाता

ज़िंदगी का रुख बदल जाता
या सुकून-ए-मर्ग मिल जाता

मुस्कराता, मैं उजल जाता
ग़म का सूरज, काश, ढल जाता

ज़िद खुशी की मैंने कब की थी?
बस, खुशी का ख़्व्वाब चल जाता

यह ज़ियादा तो न थी ख़्वाहिश
एक दिन तो दिल बहल जाता

रोते रोते ज़िंदगी गुज़री
हँसते हँसते दम निकल जाता