सोमवार, मई 17, 2010

ज़िंदगी है, जंग, लढना सीख लो

ज़िंदगी है जंग, लढना सीख लो

जी सकोगे गर्चे मरना सीख लो



ना रुका है, ना रुकेगा कारवाँ

साथ दो या धूल बनना सीख लो



बेटियों जैसी चली वह जाएँगी

हँसके साँसोंसे बिछडना सीख लो



लोग मिलकर फिर जुदा हो जाएँगे

प्यार तनहाई से करना सीख लो



मंज़िलें तो उम्रभर तरसाएँगी

राह तुम अपनी बदलना सीख लो



वाईज़ों का बीचमें क्या काम है?

खुद खुदा से बात करना सीख लो

शनिवार, मई 08, 2010

होंट चाहें और साग़र हैं मिलें

होंट चाहें और साग़र हैं मिले

रूह प्यासी और पैकर हैं मिले



ना उछल, ऐ मौज, चंदा देखकर

आसमाँसे कब समंदर हैं मिले



मिन्नतें की, गिडगिडाए, तब मिले

खूब हमको आज़माकर हैं मिले



इश्कमें तोहफ़ें मयस्सर हो गये

नाज़, नखरें, और तेवर हैं मिले




आजकल खिलने से भी डरता है दिल

गुलशनोंमें भी बवंडर हैं मिले



फूल को पहचानना दुश्वार है

हर कदम, हर मोड पत्थर हैं मिले



धूलको फिर भी गुमाँ होता नहीं

धूलमें लाखों सिकंदर हैं मिले



दर्द के गहरे 'भँवर' में डूबकर

अब सुखन के चंद गौहर हैं मिले