कहीं सायें सलाखोंके, कहीं दीवार होती है
मगर दिलपर जो पाबंदी लगे, बेकार होती है
निहत्ता मैं, वह लड़ने के लिये तैयार होती है
भँवे खंजर, नज़र तीखी, कमर तलवार होती है
निगाह-ए-नाज़, माना, दिल-जिगर के पार होती है
यह ज़ख्मे-ए-इश्क है, इसकी कभी तकरार होती है ?
इनायत और तेवर बादलों के हुस्न जैसे हैं
गरजते हैं हज़ारों बार तब बौछार होती है
लगा हो दाँव पर सब कुछ तुम्हारा इस मुहब्बतमें
मगर उनकी नज़रमें दो घडी की रार होती है
हज़ारों सालसे दस्तूर आँखों का रहा है यह
नज़र पहले चुराई जाती है, फिर चार होती है
जुनूँ की बात है, यह काम आँखों का नहीं होता
नज़रमें क़ैस की लैला बड़ी गुलनार होती है
मुहब्बत की रवानी कब ज़माना रोक पाया है ?
दिलों की नाव या तो डूबती या पार होती है
लकीरें हाथ की बसमें नहीं होती कभी अपने
खिचीं जिसने उसीके हाथ यह पतवार होती है
'भँवर' ऐसा न समझो नाचनेवाले सभी खुश हैं
के कठपुतली इशारा देखकर लाचार होती है
मगर दिलपर जो पाबंदी लगे, बेकार होती है
निहत्ता मैं, वह लड़ने के लिये तैयार होती है
भँवे खंजर, नज़र तीखी, कमर तलवार होती है
निगाह-ए-नाज़, माना, दिल-जिगर के पार होती है
यह ज़ख्मे-ए-इश्क है, इसकी कभी तकरार होती है ?
इनायत और तेवर बादलों के हुस्न जैसे हैं
गरजते हैं हज़ारों बार तब बौछार होती है
लगा हो दाँव पर सब कुछ तुम्हारा इस मुहब्बतमें
मगर उनकी नज़रमें दो घडी की रार होती है
हज़ारों सालसे दस्तूर आँखों का रहा है यह
नज़र पहले चुराई जाती है, फिर चार होती है
जुनूँ की बात है, यह काम आँखों का नहीं होता
नज़रमें क़ैस की लैला बड़ी गुलनार होती है
मुहब्बत की रवानी कब ज़माना रोक पाया है ?
दिलों की नाव या तो डूबती या पार होती है
लकीरें हाथ की बसमें नहीं होती कभी अपने
खिचीं जिसने उसीके हाथ यह पतवार होती है
'भँवर' ऐसा न समझो नाचनेवाले सभी खुश हैं
के कठपुतली इशारा देखकर लाचार होती है